(अलेक्जेंडर द ग्रेट)
जन्म: | 20/21 जुलाई, 356 ई. पू. (मकदूनियाँ, मेसेडोनिया) |
मृत्यु: | 10/11 जून, 323 ई. पू. (बेबीलोन) |
पिता: | फिलीप द्धितीय |
माता: | ओलिम्पिया |
जीवनसंगी: | रुखसाना |
राष्ट्रीयता: | यूनानी |
सिकंदर महान् का जन्म 20 जुलाई, 356 ई.पू. को पेला, मैसेडोन (यूनान) में हुआ था। वह मेसेडोनिया का ग्रीक प्रशासक था। इतिहास में सिकंदर सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया है। अपनी मृत्यु तक सिकंदर उस तमाम भूमि को जीत चुका था, जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को थी। इसीलिए उसे विश्व विजेता भी कहा जाता है। सिकंदर के पिता का नाम फिलिप द्वितीय और माता का नाम ओलंपियाज था।
सिकंदर ने अपने कार्यकाल में ईरान, सीरिया, मिस्र, मेसोपोटामिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बैक्ट्रिया और भारत में पंजाब तक के प्रदेश पर विजय हासिल की थी। सिकंदर ने सबसे पहले ग्रीक राज्यों को जीता और फिर वह एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की) की तरफ बढ़ा। उस क्षेत्र पर उस समय फारस का शासन था। फारसी साम्राज्य मिस्र से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक फैला था। फारस के शाह दारा तृतीय को उसने तीन अलग-अलग युद्धों में पराजित किया। हालाँकि उसकी तथाकथित ‘विश्व विजय’ फारस विजय से अधिक नहीं थी, पर उसे शाह दारा के अलावा अन्य स्थानीय प्रोतपालों से भी युद्ध करना पड़ा था।
मिस्र, बैक्ट्रिया तथा आधुनिक तजाकिस्तान में स्थानीय प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। भारत में सिकंदर का पुरु से युद्ध हुआ, जिसमें पुरु की हार हुई। भारत पर सिकंदर के आक्रमण के समय चाणक्य तक्षशिला में प्राध्यापक थे। तक्षशिला और गांधार के राजा आम्मि ने सिकंदर से समझौता कर लिया। चाणक्य ने भारत की संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओं से आग्रह किया, किंतु सिकंदर से लड़ने कोई नहीं आया। पुरु ने सिकंदर से युद्ध किया, किंतु हार गया। मगध के राजा महापद्मनंद ने चाणक्य का साथ देने से मना कर दिया और चाणक्य का अपमान भी किया। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को साथ लेकर एक नए साम्राज्य की स्थापना की और सिकंदर द्वारा जीते गए राज्य पंजाब के राजदूत सेल्यूकस को हराया।
सिकंदर के आक्रमण के समय सिंधु नदी की घाटी के निचले भाग में शिविगण के पड़ोस में रहनेवाले एक गण का नाम अगलस्सोई था। सिकंदर जब सिंधु नदी के मार्ग से भारत से वापस लौट रहा था, तो इस गण के लोगों से उसका मुकाबला हुआ। अगलस्सोई लोगों ने सिकंदर से जमकर लोहा लिया। उनके एक तीर से सिकंदर घायल भी हो गया, लेकिन अंत में विजय सिकंदर की ही हुई। उसने मस्सग दुर्ग पर अधिकार कर लिया और भयंकर नरसंहार के बाद अगलस्सोई लोगों का दमन कर दिया।
भारतीय सैन्यबल अपने चरम रूप में राजा पोरस की सेना में दिखाई दिया, जो सिकंदर का सबसे शक्तिशाली शत्रु था। उसने अर्रियन के अनुमान के अनुसार 30 हजार पैदल सिपाहियों, 4 हजार घुड़सवारों, 300 रथों और 200 हाथियों की सेना लेकर सिकंदर का मुकाबला किया। उसकी पराजय के बाद भी सिकंदर को उसकी तरफ मैत्री का हाथ बढ़ाना पड़ा। अगलस्सोई जाति के लोगों ने 40 हजार पैदल सिपाहियों और 3 हजार घुड़सवारों की सेना लेकर सिकंदर से टक्कर ली। कहा जाता है कि उनके एक नगर के बीस हजार निवासियों ने अपने आपको बंदियों के रूप में शत्रुओं के हाथों में समर्पित करने के बजाय, बाल-बच्चों सहित आग में कूदकर प्राण दे देना ही उचित समझा।
सिकंदर को कई स्वायत्त जातियों के संघ के संगठित विरोध का सामना करना पड़ा, जिनमें मालव तथा सुद्रक आदि जातियाँ थीं, जिसकी संयुक्त सेना में 90 हजार पैदल सिपाही, 10 हजार घुड़सवार और 900 से अधिक रथ थे। उनके ब्राह्मणों ने भी पढ़ने-लिखने का काम छोड़कर तलवार संभाली और रणक्षेत्र में लड़ते हुए मारे गए। बहुत ही कम लोग बंदी बनाए जा सके।
325 ई.पू. में सिकंदर भारत भूमि छोड़कर बेबीलोन चला गया। 33 वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु बेबीलोन में 10 या 11 जून 323 ई.पू. को हो गई। सिकंदर इतिहास में एलेक्जेंडर तृतीय, एलेक्जेंडर द ग्रेट तथा एलेक्जेंडर मेसेडोनियन के नाम से भी जाना जाता है।
326 ईसा पूर्व में यूनानी शासक सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था। पंजाब में सिंधु नदी को पार करते हुए सिकंदर तक्षशिला पहुंचा, उस समय चाणक्या तक्षशिला मे अध्यापक थे। वहां के राजा आम्भी ने सिकंदर की अधीनता स्वीकार कर ली। चाणक्या ने भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओ से आग्रह किया किंतु सिकंदर से लड़ने कोई नही आया। और पश्चिमोत्तर प्रदेश के अनेक राजाओं ने तक्षशिला की देखा देखी सिकंदर के सामने आत्म समर्पण कर दिया।
इसके बाद पूरी दुनिया को जीतना का सपने देखने वाला सम्राट फौरन तक्षशिला से होते हुए राजा पोरस के सम्राज्य की और बढ़ने लगा जो झेलम और चेनाब नदी के बीच बसा हुआ था। राजा पोरस के राज्य पर हक जमाने के मकसद से सिकंदर और राजा पोरस के बीच युद्ध हुआ तो राजा पोरस ने बहादुरी के साथ सिकंदर के साथ लड़ाई की लेकिन काफी संघर्ष और कोशिशों के बाबजूद भी उसे हार का सामना करना पड़ा। वहीं इस युद्धा में सिकंदर की सेना को भी भारी नुकसान पहुंचा था।
आपको बता दें कि राजा पोरस को काफी शक्तिशाली शासक माना जाता था। वहीं पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक राजा पोरस का राज्य था।
युद्ध में पोरस पराजित हुआ परन्तु सिकंदर को पोरस की बहादुरी ने काफी प्रभावित किया था, क्योंकि जिस तरह राजा पोरस ने लड़ाई लड़ी थी उसे देख सिकंदर दंग थे। और इसके बाद सिकंदर ने राजा पोरस से दोस्ती कर ली और उसे उसका राज्य और कुछ नए इलाके भी दिए। दरअसल सिकंदर को कूटनीतिज्ञ समझ थी इसलिए आगे किसी तरह की मदद के लिए उसने पोरस से व्यवहारिक तौर पर दोस्ताना संबंध जारी रखे थे।
उसके बाद सिकंदर की सेना ने छोटे हिंदू गणराज्यों के साथ लड़ाई की। इसमें कठ गणराज्य के साथ हुई लड़ाई काफी बड़ी थी। आपको बता दें कि कठ जाति के लोग अपने साहस के लिए जानी जाती थी।
यह भी माना जाता है कि इन सभी गणराज्यों को एक साथ लाने में आचार्य चाणक्य का भी बहुत बड़ा योगदान था। इस सभी गणराज्यों ने सिकंदर को काफी नुकसान भी पहुंचाया था जिससे सिकंदर की सेना बेहद डर गई थी।
सिकंदर व्यास नदी तक पहुँचा, परन्तु वहाँ से उसे वापस लौटना पड़ा। क्यूंकि कठों से युद्ध लड़ने के बाद उसकी सेना ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था। दरअसल व्यास नदी के पार नंदवंशी के राजा के पास 20 हजार घुड़सवार सैनिक, 2 लाख पैदल सैनिक, 2 हजार 4 घोड़े वाले रथ और करीब 6 हजार हाथी थे।
सिकंदर पूरे भारत पर ही विजय पाना चाहता था लेकिन उसे अपनी सैनिकों की मर्जी की वजह से व्यास नदी से ही वापस लौटना पड़ा था।
पूरी दुनिया पर शासन करने का सपना संजोने वाले सम्राट सिकंदर जब 323 ईसा पूर्व में बेबीलोन (Babylon) पहुंचे तो वहां पर उसे भीषण बुखार (Typhoid) ने जकड़ लिया। अत: 33 वर्ष की उम्र में 10 जून 323 ईसा पूर्व में सिकन्दर की मृत्यु हो गई।
सिकंदर के मृत्यु के बाद जब उसकी अरथी को ले जाया जा रहा था, तब अरथी के बाहर सिकंदर के दोनों हाथ बाहर लटके हुए थे। क्यूंकी उसने मृत्यु से पहले कहा था की जब मेरी मृत्यु हो जाए तो मेरे हाथ अरथी के अंदर मत रखना, सिकंदर चाहता था उसके हाथ अरथी के बाहर रहें।
वह पूरी दुनिया को यह दिखाना चाहता था की जिसने दुनिया को जिता, जिसने अपने हाथ में सब कुछ भर लिया, मरने के बाद वह हाथ भी खाली हैं। जैसे इंसान खाली हाथ दुनिया मे आता हैं वैसे ही खाली हाथ उसे जाना पड़ता है, चाहे वह कितना भी महान क्यों न बन जाये।