Shlok Gyan

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shlok-gyan--103

पात्रे  त्यागी  गुणे रागी संविभागी च बन्धुषु |   

शास्त्रे बोद्धा रणे योद्धा पुरुषः पञ्चलक्षणम्  ||

भावार्थ :-

सुपात्र व्यक्तियों का सहायक , गुणी जनों का  आदर करने वाला, पैतृक संपत्ति को अपने भाइयों  में समान भागों मे वितरित करने वाला ,  शास्त्रों का ज्ञाता , तथा युद्ध में योद्धा के रूप में कुशल , ये पांच विशेषतायें एक महापुरुष के लक्षण कहे गये हैं |

shlok-gyan--104

अग्निः शेषं  ऋणः शेषं  शत्रुः शेषं  तथैव च |

पुनः पुनः प्रवर्धेत  तस्मात् शेषं न कारयेत्  ||

भावार्थ :-

यदि आग पूरी तरह्  नहीं बुझाई  जाय  और ऋण का पूरा भुगतान न किया जाय , और इसी  प्रकार शत्रु पर पूर्ण विजय प्राप्त न कर उसे छोड्  दिया जाय तो इन  तीनों की  पुनः वृद्धि हो  जाती है  | इस लिये इन तीनों परिस्थितियों में  शेष कुछ भी नहीं छोड्ना चाहिये |

shlok-gyan--105

परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः |

अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यम् औषधम्   ||

भावार्थ :-

एक अनजान व्यक्ति जो आप के लिये हितकारी है वह् एक मित्र के समान है | इस के विपरीत आप का अहित करने वाला एक मित्र भी एक अनजान व्यक्ति के समान है |  इसी प्रकार अपनी देह में  स्थित व्याधि  भी अहितकारी है , जब कि   सुदूर जंगलों  मे पायी जाने  वाली और औषधि  के रूप में प्रयुक्त होने  वाली  जडीबूटी हितकारी होती है  |

shlok-gyan--106

दुर्जनस्य  विशिष्टत्वं  परोपद्रवकारिणं |

व्याघ्रस्य चोपवासेन पारणं पशुमारणं  ||

भावार्थ :- 

दुष्ट व्यक्तियों  का विशिष्टत्व भी अन्य व्यक्तियों  के लिये उपद्रव कारक होता है  जैसे कि एक भूखा व्याघ्र अपनी  क्षुधा शान्ति के लिये  जंगल के अन्य पशुओं  की मृत्यु का कारण बनता है | 

shlok-gyan--107

दुर्जनं  सुजनं  कर्तुं   नोपकारशतैरपि |

अपानं मृत्सहस्रेण धौतं चास्य कथं  भवेत् || 

भावार्थ :-

दुष्ट व्यक्तियों को सज्जन व्यक्तियों में परिवर्तित  करना  उनके उपर सौ बार उपकार करने पर भी संभव नहीं होता, उसी प्रकार जैसे हजारों बार मिट्टी  और जल से धोने के बाद भी गुदा द्वार  पर कोई   प्रभाव नहीं पडता है (वह् पुन: अपवित्र हो जाता है ) |

shlok-gyan--108

अल्पकार्यकराः सन्ति ये नरा बहु भाषिणः |

शरत्कालिनमेघास्ते नूनं गर्जन्ति केवलम् ||

भावार्थ :-

बातूनी व्यक्ति बातें अधिक करते हैं और कार्य कम करते हैं ठीक उसी प्रकार जैसे शरद्  ऋतु में मेघ गर्जन तो करते है  पर जल वृष्टि नहीं करते हैं

shlok-gyan--109

अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणम् |

चातुर्यं  भूषणं  नार्या  उद्द्योगो  नर   भूषणम्  ||

भावार्थ :-

घोडे की शोभा  (प्रशंसा ) उसके वेग के कारण होती है और हाथी की उसकी मदमस्त चाल से होती है | नारियों की शोभा उनकी विभिन्न कार्यों मे दक्षता के कारण और पुरुषों  की उनकी उद्द्योगशीलता  के कारण होती है |

shlok-gyan--110

अपक्वे तु घटे नीरे चालन्यां सूक्ष्म पिष्टकं  |

स्त्रीणां च हृदयं वार्ता न तिष्ठति कदापि हि ||

भावार्थ :-

एक  कच्चे  घडे में  पानी,  एक चलनी मे बारीक आटा ,  स्त्रियों के हृदय में कोई  समाचार (गपशप) ,  कभी भी  ठहर नहीं सकते हैं 

shlok-gyan--111

अन्वर्थवेदी  शूरश्च  क्षमावान्न  च  कर्कशः |

कल्याणमेधास्तेजस्वी स  भद्रः परिकीर्तिते || 

भावार्थ :-

जो व्यक्ति बुद्धिमान्, शूर (बहादुर), क्षमावान् ,सहृदय (कर्कश  नहीं ), जनकल्याण की भावना से युक्त तथा तेजस्वी होता है उसे ही  समाज में भद्र पुरुष कहा जाता है |

Shlok-gyan--116

आरोग्यं  विद्वता सज्जनमैत्री महाकुले जन्म  |

स्वाSSधीनता च पुंसां महदैश्वर्यं बिनाSप्यर्थम् ||

भावार्थ :-

यदि कोई व्यक्ति निरोग हो, विद्वान् हो, सज्जन व्यक्तियों से उसकी मित्रता हो, किसी महान् कुल

मे उसका जन्म हो तथा आत्मनिर्भर हो तो वह् बिना धनवान हुए ही महान् ऐश्वर्यवान होता है |