Shlok Gyan

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Shlok-gyan--396

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे ।

महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बडे-बडे पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है ।

Shlok-gyan--397

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।

परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि ! हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है ।

Shlok-gyan--398

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।

जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

हे देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी ! तुम्हें मेरा प्रणाम है ।

Shlok-gyan--399

पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम् ।

वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियामहम् ॥

भावार्थ :-

कमल ही जिनका निवास स्थान है, कमल ही जिनके कर कमलों में सुशोभित है तथा कमल दल के समान ही जिनके नेत्र हैं उन कमलामुखी कमलनाभ प्रिया श्रीकमला देवी की मैं वन्दना करता हूँ ।

Shlok-gyan--400

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।

लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥

भावार्थ :-

भगवान् विष्णु की भार्या, क्षमास्वरूपिणी, माधवी, माधवप्रिया, प्रियसखी, अच्युतवल्लभा, भूदेवी भगवती लक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूँ ।

Shlok-gyan--401

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥

भावार्थ :-

जो साक्षात् ब्रह्मरूपा, मन्द-मन्द मुसकरानेवली, सोने के आवरण से आवृत, दयार्द्र, तेजोमयी, पुर्णकामा, भक्तनुग्रहकारिणी, कमल के आसन पर विराजमान तथा पद्यवर्णा हैं, उन लक्ष्मी देवी का मैं यहाँ आवाहन करता हूँ ।

Shlok-gyan--402

अग्निना सिच्यमानोऽपि वृक्षो वृद्धिं न चाप्नुयात् ।

तथा सत्यं विना धर्मः पुष्टिं नायाति कर्हिचित् ॥

भावार्थ :-

अग्नि से सींचे हुए वृक्ष की वृद्धि नहीं होती, जैसे सत्य के बिना धर्म पुष्ट नहीं होता ।

Shlok-gyan--403

ये वदन्तीह सत्यानि प्राणत्यागेऽप्युपस्थिते ।

प्रमाणभूता भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥

भावार्थ :-

प्राणत्याग की परिस्थिति में भी जो सत्य बोलता है, वह प्राणियों में प्रमाणभूत है । वह संकट पार कर जाता है ।

Shlok-gyan--404

सत्यहीना वृथा पूजा सत्यहीनो वृथा जपः ।

सत्यहीनं तपो व्यर्थमूषरे वपनं यथा ॥

भावार्थ :-

उज्जड जमीन में बीज बोना जैसे व्यर्थ है, वैसे बिना सत्य की पूजा, जप और तप भी व्यर्थ है ।

Shlok-gyan--405

भूमिः कीर्तिः यशो लक्ष्मीः पुरुषं प्रार्थयन्ति हि ।

सत्यं समनुवर्तन्ते सत्यमेव भजेत् ततः ॥

भावार्थ :-

भूमि, कीर्ति, यश और लक्ष्मी, सत्य का अनुसरण करनेवाले पुरुष की प्रार्थना करते हैं । इस लिए सत्य को हि भजना चाहिए ।