Shlok Gyan

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Shlok-gyan--416

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरीतीरपवित्रदेशे।

यद्दर्शनात् पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्रयम्बकमीशमीडे ॥

भावार्थ :-

जो भगवान् शंकर गोदावरी नदी के पवित्र तट पर स्थित स्वच्छ सह्याद्रिपर्वत के शिखर पर निवास करते हैं, जिनके दर्शन से शीघ्र सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उन्हीं त्रयम्बकेश्वर भगवान् की मैं स्तुति करता हूँ ।

Shlok-gyan--417

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यै:।

श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥

भावार्थ :-

जो भगवान् शंकर सुन्दर ताम्रपर्णी नामक नदी व समुद्र के संगम में श्री रामचन्द्र जी के द्वारा अनेक बाणों से या वानरों द्वारा पुल बांधकर स्थापित किये गये हैं, उन्हीं श्रीरामेश्वर नामक शिव को मैं नियम से प्रणाम करता हूँ ।

Shlok-gyan--418

यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।

सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि ॥

भावार्थ :-

जो भगवान् शंकर डाकिनी और शाकिनी समुदाय में प्रेतों के द्वारा सदैव सेवित होते हैं, अथवा डाकिनी नामक स्थान में प्रेतों द्वारा जो सेवित होते हैं, उन्हीं भक्तहितकारी भीमशंकर नाम से प्रसिद्ध शिव को मैं प्रणाम करता हूँ ।

Shlok-gyan--419

सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।

वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥

भावार्थ :-

जो भगवान् शंकर आनन्दवन काशी क्षेत्र में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं, जो परमानन्द के निधान एवं आदिकारण हैं, और जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, ऐसे अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की मैं शरण में जाता हूँ ।

Shlok-gyan--420

इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।

वन्दे महोदारतरं स्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणं प्रपद्ये ॥

भावार्थ :-

जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, मैं उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण में जाता हूँ ।

Shlok-gyan--421

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगम् निर्मलभासितशोभितलिंगम्।

जन्मजदु:खविनाशकलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

भावार्थ :-

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग ब्रह्मा, विष्णु व अन्य देवताओं से भी पूजित है, जो निर्मल कान्ति से सुशोभित है, तथा जन्म-जरा आदि दु:खों को दूर करने वाला है।

Shlok-gyan--422

देवमुनिप्रवरार्चितलिंगम् कामदहं करुणाकरलिंगम्।

रावणदर्पविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

भावार्थ :-

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवताओं व श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पूजित है, जिसने क्रोधानल से कामदेव को भस्म कर दिया, जो दया का सागर है और जिसने लंकापति रावण के भी दर्प का नाश किया है।

Shlok-gyan--423

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिंगम् बुद्धिविवर्द्धनकारणलिंगम् ।

सिद्धसुरासुरवन्दितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :-

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो सभी प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से लिप्त है, अथवा सुगन्धयुक्त नाना द्रव्यों से पूजित है, और जिसका पूजन व भजन बुद्धि के विकास में एकमात्र कारण है तथा जिसकी पूजा सिद्ध, देव व दानव हमेशा करते हैं।

Shlok-gyan--424

कनकमहामणिभूषितलिंगम् फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम्।

दक्षसुयज्ञविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :-

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग सुवर्ण व महामणियों से भूषित है, जो नागराज वासुकि से वेष्टित है, और जिसने दक्षप्रजापति के यज्ञ का नाश किया है।

Shlok-gyan--425

कुंकुमचन्दनलेपितलिंगम् पंकजहारसुशोभितलिंगम्।

संचितपापविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :-

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग केशरयुक्त चन्दन से लिप्त है और कमल के पुष्पों के हार से सुशोभित है, जिस लिंग के अर्चन व भजन से पूर्वजन्म या जन्म-जन्मान्तरों के सञ्चित अर्थात् एकत्रित हुए पापकर्म नष्ट हो जाते हैं, अथवा समुदाय रूप में उपस्थित हुए जो आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक त्रिविध ताप हैं, वे नष्ट हो जाते हैं।