Shlok Gyan

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Shlok-gyan--406

सत्यं स्वर्गस्य सोपानं पारावरस्य नौरिव ।

न पावनतमं किञ्चित् सत्यादभ्यधिकं क्वचित् ॥

भावार्थ :-

समंदर के जहाज की तरह, सत्य स्वर्ग का सोपान है । सत्य से ज़ादा पावनकारी और कुछ नहीं ।

Shlok-gyan--407

सत्येन पूयते साक्षी धर्मः सत्येन वर्धते ।

तस्मात् सत्यं हि वक्तव्यं सर्ववर्णेषु साक्षिभिः ॥

भावार्थ :-

सत्य वचन से साक्षी पावन बनता है, सत्य से धर्म बढता है । इस लिए सभी वर्णो में, साक्षी ने सत्य हि बोलना चाहिए ।

Shlok-gyan--408

तस्याग्निर्जलमर्णवः स्थलमरिर्मित्रं सुराः किंकराः कान्तारं नगरं गिरि र्गृहमहिर्माल्यं मृगारि र्मृगः ।

पातालं बिलमस्त्र मुत्पलदलं व्यालः श्रृगालो विषं पीयुषं विषमं समं च वचनं सत्याञ्चितं वक्ति यः ॥

भावार्थ :-

जो सत्य वचन बोलता है, उसके लिए अग्नि जल बन जाता है, समंदर जमीन, शत्रु मित्र, देव सेवक, जंगल नगर, पर्वत घर, साँप फूलों की माला, सिंह हिरन, पाताल दर, अस्त्र कमल, शेर लोमडी, झहर अमृत, और विषम सम बन जाते हैं ।

Shlok-gyan--409

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रमोदिनीम् ।

श्रियं देवीमुप ह्रये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥

भावार्थ :-

जिस देवी के आगे घोड़े तथा उनके पीछे रथ रहते हैं तथा जो हस्तिनाद को सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन्हीं श्री देवीका मैं आवाहन करता हूँ , लक्ष्मी देवी मुझे प्राप्त हों ।

Shlok-gyan--410

गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥

भावार्थ :-

जो दुराधर्षा तथा नित्यपुष्टा हैं तथा गोबर से युक्त गन्धगुणवती पृथिवी ही जिनका स्वरूप है, सब भूतों की स्वामिनी उन लक्ष्मीदेवी का मैं यहाँ अपने घर में आवाहन करता हूँ ।

Shlok-gyan--411

महालक्ष्मै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि ।

तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात् ॥

भावार्थ :-

हम विष्णु पत्नी महालक्ष्मी को जानते हैं तथा उनका ध्यान करते हैं । वे लक्ष्मी जी हमें प्रेरणा प्रदान करें ।

Shlok-gyan--412

सद्यो वैगुण्यमायान्ति शीलाद्याः सकला गुणाः ।

पराङ्मुखी जगद्धात्री यस्य त्वं विष्णुवल्लभे ॥

भावार्थ :-

हे देवि ! तुम्हारे गुणों का वर्णन करने में तो श्री ब्रह्मा जी की रचना भी समर्थ नहीं है । अत: हे कमलनयने ! अब मुझ पर प्रसन्न होओ और मुझे कभी न छोड़ो ।

Shlok-gyan--413

अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने ।

धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥

भावार्थ :-

अश्वदायिनी, गोदायिनी, धनदायिनी, महाधनस्वरूपिणी हे देवी ! मेरे पास धन रहे, आप मुझे सभी अभिलषित वस्तुएँ प्रदान करें ।

Shlok-gyan--414

त्वं माता सर्वलोकानां देवदेवो हरिः पिता ।

त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद् व्याप्तं चराचरम् ॥

भावार्थ :-

तुम संपूर्ण लोकों की माता हो तथा देवदेव भगवान् हरि पिता हैं । हे मातः ! तुमसे और श्रीविष्णु भगवान् से यह सकल चराचर जगत् व्याप्त है ।

Shlok-gyan--415

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।

सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥

भावार्थ :-

जो भगवान् शंकर पर्वतराज हिमालय के समीप मन्दाकिनी के तट पर स्थित केदारखण्ड नामक श्रृंग में निवास करते हैं, तथा मुनीश्वरों के द्वारा हमेशा पूजित हैं, देवता-असुर, यक्ष-किन्नर व नाग आदि भी जिनकी हमेशा पूजा किया करते हैं, उन्हीं अद्वितीय कल्याणकारी केदारनाथ नामक शिव की मैं स्तुति करता हूँ ।