Shlok Gyan

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Shlok-gyan--426

देवगणार्चितसेवितलिंगम् भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्।

दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :-

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवगणों से पूजित तथा भावना और भक्ति से सेवित है, और जिस लिंग की प्रभा–कान्ति या चमक करोड़ों सूर्यों की तरह है।

Shlok-gyan--427

अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम् सर्वसमुद्भवकारणलिंगम्।

अष्टदरिद्रविनाशितलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्॥

भावार्थ :-

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग अष्टदल कमल के ऊपर विराजमान है, और जो सम्पूर्ण जीव–जगत् के उत्पत्ति का कारण है, तथा जिस लिंग की अर्चना से अणिमा महिमा आदि के अभाव में होने वाला आठ प्रकार का जो दारिद्र्य है, वह भी नष्ट हो जाता है।

Shlok-gyan--428

सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगम् सुरवनपुष्पसदार्चितलिंगम्।

परात्परं परमात्मकलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥

भावार्थ :-

मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग बृहस्पति तथा देवश्रेष्ठों से पूजित है, और जिस लिंग की पूजा देववन अर्थात् नन्दनवन के पुष्पों से की जाती है, जो भगवान् सदाशिव का लिंग स्थूल–दृश्यमान इस जगत् से परे जो अव्यक्त–प्रकृति है, उससे भी परे सूक्ष्म अथवा व्यापक है, अत: वही सबका वन्दनीय तथा अतिशय प्रिय आत्मा है।

Shlok-gyan--429

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

भावार्थ :-

जो देवी सब प्राणियों में माता रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--430

इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या ।

भूतेषु सततं तस्यै व्याप्त्यै देव्यै नमो नमः ॥

भावार्थ :-

जो जीवोंके इंद्रियवर्ग की अधिष्ठात्री देवी एवं सब प्राणियों में सदा व्याप्त रहनेवाली हैं, उन व्याप्तिदेवीको बारंबार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--431

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।

गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो । नारायणि! तुम्हे नमस्कार है ।

Shlok-gyan--432

चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद् व्याप्य स्थिता जगत् ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

भावार्थ :-

जो देवी चैतन्य रूप से इस सम्पूर्ण जगत को व्याप्त करके स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार ।

Shlok-gyan--433

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।

प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥

भावार्थ :-

शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवि! हम पर प्रसन्न हो होओ । सम्पूर्ण जगत की माता ! प्रसन्न होओ । विश्वेश्वरि ! विश्व की रक्षा करो । देवी ! तुम्हीं चराचर जगत की अधीश्वरी हो ।

Shlok-gyan--435

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

सर्वस्वरूपा, सर्वश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गा देवी ! सब भयों से हमारी रक्षा कृ ; तुम्हे नमस्कार है ।

Shlok-gyan--463

गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे ।

अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः ॥

भावार्थ :-

विघ्नरूप अन्धकार का नाश करनेवाले, अथाह करुणारूप जलराशि से तरंगति नेत्रों वाले गणेश नामक ज्योतिपुंज को नमस्कार है ।