अनेककोटिब्रह्याण्डनायकं जगदीश्वरम् ।
अनन्तविभवं विष्णु मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
भावार्थ :-
जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभवसम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णुरूप हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।
नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे ।
नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने ॥
भावार्थ :-
हे भगवान ! हे रुद्र ! आपका तेज अनगिनत सूर्योंके तेज समान है । रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे भवदेव ! आपको नमस्कार है ।
शर्वाय क्षितिरूपाय नंदीसुरभये नमः ।
ईशाय वसवे सुभ्यं नमः स्पर्शमयात्मने ॥
भावार्थ :-
नंदी और सुरभि कामधेनु भी आपके ही प्रतिरूप हैं । पृथ्वीको धारण करनेवाले हे शर्वदेव ! आपको नमस्कार है । हे वायुरुपधारी, वसुरुपधारी आपको नमस्कार है ।
तस्मै नम: परमकारणकारणाय दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय ।
नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय ॥
भावार्थ :-
जो शिव कारणों के भी परम कारण हैं, अति दिप्यमान उज्ज्वल एवं पिङ्गल नेत्रोंवाले हैं, सर्पोंके हार-कुण्डल आदि से भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देनेवालें हैं, उन शिवजी को नमस्कार करता हूँ ।
पशूनां पतये चैव पावकायातितेजसे ।
भीमाय व्योम रूपाय शब्द मात्राय ते नमः ॥
भावार्थ :-
अग्निरुप तेज व पशुपति रूपवाले हे देव ! आपको नमस्कार है । शब्द तन्मात्रा से युक्त आकाश रूपवाले हे भीमदेव ! आपको नमस्कार है ।
उग्रायोग्रास्वरूपाय यजमानात्मने नमः ।
महाशिवाय सोमाय नमस्त्वमृत मूर्तये ॥
भावार्थ :-
हे उग्ररूपधारी यजमान सदृश आपको नमस्कार है । सोमरूप अमृतमूर्ति हे महादेव ! आपको नमस्कार है ।
श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय ।
कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय ॥
भावार्थ :-
जो निर्मल चन्द्रकला तथा सर्पोंद्वारा ही भूषित एवं शोभायमान हैं, गिरिराजग्गुमारी अपने मुखसे जिनके लोचनोंका चुम्बन करती हैं, कैलास एवं महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकीके दु:खको दूर करनेवाले हैं, उन शिवजीको नमस्कार करता हूँ
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।
स्वर्गापवर्गदे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ :-
बुद्धि रूप से सब लोगों में विराजमान रहनेवाली तथा स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली नारायणी देवी ! आपको नमस्कार है ।
कलाकाष्ठादिरूपेण परिणामप्रदायिनि ।
विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ :-
कला, काष्ठ आदि के रूप से क्रमशः परिणाम की ओर ले जाने वाली तथा विश्व का उपसंहार करने में समर्थ नारायणि ! आपको नमस्कार है ।
शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे ।
प्रसीद वैष्णवीरुपे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ :-
शंख, चक्र गदा और शार्ङ्गधनुषरूप उत्तम आयुधों को धारण करने वाली वैष्णवी शक्तिरूपा नारायणि ! आप प्रसन्न होओ । आपको नमस्कार है ।