Shlok Gyan

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Shlok-gyan--474

अनेककोटिब्रह्याण्डनायकं जगदीश्वरम् ।

अनन्तविभवं विष्णु मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

भावार्थ :-

जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभवसम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णुरूप हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

Shlok-gyan--475

नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे ।

नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने ॥

भावार्थ :-

हे भगवान ! हे रुद्र ! आपका तेज अनगिनत सूर्योंके तेज समान है । रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे भवदेव ! आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--476

शर्वाय क्षितिरूपाय नंदीसुरभये नमः ।

ईशाय वसवे सुभ्यं नमः स्पर्शमयात्मने ॥

भावार्थ :-

नंदी और सुरभि कामधेनु भी आपके ही प्रतिरूप हैं । पृथ्वीको धारण करनेवाले हे शर्वदेव ! आपको नमस्कार है । हे वायुरुपधारी, वसुरुपधारी आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--477

तस्मै नम: परमकारणकारणाय दिप्तोज्ज्वलज्ज्वलित पिङ्गललोचनाय ।

नागेन्द्रहारकृतकुण्डलभूषणाय ब्रह्मेन्द्रविष्णुवरदाय नम: शिवाय ॥

भावार्थ :-

जो शिव कारणों के भी परम कारण हैं, अति दिप्यमान उज्ज्वल एवं पिङ्गल नेत्रोंवाले हैं, सर्पोंके हार-कुण्डल आदि से भूषित हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादि को भी वर देनेवालें हैं, उन शिवजी को नमस्कार करता हूँ ।

Shlok-gyan--478

पशूनां पतये चैव पावकायातितेजसे ।

भीमाय व्योम रूपाय शब्द मात्राय ते नमः ॥

भावार्थ :-

अग्निरुप तेज व पशुपति रूपवाले हे देव ! आपको नमस्कार है । शब्द तन्मात्रा से युक्त आकाश रूपवाले हे भीमदेव ! आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--479

उग्रायोग्रास्वरूपाय यजमानात्मने नमः ।

महाशिवाय सोमाय नमस्त्वमृत मूर्तये ॥

भावार्थ :-

हे उग्ररूपधारी यजमान सदृश आपको नमस्कार है । सोमरूप अमृतमूर्ति हे महादेव ! आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--480

श्रीमत्प्रसन्नशशिपन्नगभूषणाय शैलेन्द्रजावदनचुम्बितलोचनाय ।

कैलासमन्दरमहेन्द्रनिकेतनाय लोकत्रयार्तिहरणाय नम: शिवाय ॥

भावार्थ :-

जो निर्मल चन्द्रकला तथा सर्पोंद्वारा ही भूषित एवं शोभायमान हैं, गिरिराजग्गुमारी अपने मुखसे जिनके लोचनोंका चुम्बन करती हैं, कैलास एवं महेन्द्रगिरि जिनके निवासस्थान हैं तथा जो त्रिलोकीके दु:खको दूर करनेवाले हैं, उन शिवजीको नमस्कार करता हूँ

Shlok-gyan--481

सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।

स्वर्गापवर्गदे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

बुद्धि रूप से सब लोगों में विराजमान रहनेवाली तथा स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली नारायणी देवी ! आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--482

कलाकाष्ठादिरूपेण परिणामप्रदायिनि ।

विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

कला, काष्ठ आदि के रूप से क्रमशः परिणाम की ओर ले जाने वाली तथा विश्व का उपसंहार करने में समर्थ नारायणि ! आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--483

शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे ।

प्रसीद वैष्णवीरुपे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

शंख, चक्र गदा और शार्ङ्गधनुषरूप उत्तम आयुधों को धारण करने वाली वैष्णवी शक्तिरूपा नारायणि ! आप प्रसन्न होओ । आपको नमस्कार है ।