Shlok Gyan

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Shlok-gyan--464

पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुद्रा ।

मायाविनां दुर्विभावयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

भावार्थ :-

जो पुराणपुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीडाएँ करते हैं ; जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाव्य है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

Shlok-gyan--465

प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुगमम् 

उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् ॥

भावार्थ :-

जो इन्द्र आदि देवेश्वरों के समूह से वन्दनीय हैं, अनाथों के बन्धु हैं, जिनके युगल कपोल सिन्दूर राशि से अनुरञ्जित हैं, जो प्रवल विघ्नों का खण्डन करने के लिए प्रचण्ड दण्डस्वरूप हैं, उन श्रीगणेश जी का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ ।

Shlok-gyan--466

आवाहये तं गणराजदेवं रक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्दम् ।

विध्नान्तकं विध्नहरं गणेशं भजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया ॥

भावार्थ :-

जो देवताओं के गण के राजा हैं, लाल कमल के समान जिनके देह की आभा है, जो सबके वन्दनीय हैं, विघ्न के काल हैं, विघ्नों को हरनेवाले हैं, शिवजी के पुत्र हैं, उन गणेशजी का मैं सिद्धि के साथ आवाहन और भजन करता हूँ ।

Shlok-gyan--467

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् ।

गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

भावार्थ :-

जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, सबके हृदय में अंतर्यामी रूप से स्थित, गुणातीत एवं गुणमय हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

Shlok-gyan--468

तमोयोगिनं रुद्ररूपं त्रिनेत्रं जगद्धारकं तारकं ज्ञानहेतुम् ।

अनेकागमैः स्वं जनं बोधयन्तं सदा सर्वरूपं गणेशं नमामः ॥

भावार्थ :-

जो तमो गुण के सम्पर्क से रुद्ररूप धारण करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो जगत् के हर्ता, तारक और ज्ञान के हेतु हैं तथा जो अनेक आगमोक्त वचनों द्धारा अपने भक्तजनों को सदा तत्त्वज्ञानोपदेश देते रहते हैं, उन सर्वरूप गणेश को हम नमस्कार करते हैं ।

Shlok-gyan--469

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया ।

सर्वविध्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

भावार्थ :-

जो स्वेच्छा से संसार की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन सर्वविघ्नहारी देवता मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

Shlok-gyan--470

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।

सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

भावार्थ :-

जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी, सर्वव्यापक और सम्पूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं, उन भगवान् मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

Shlok-gyan--471

पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।

भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

भावार्थ :-

जो पार्वती जी को पुत्र रूप से आनन्द प्रदान करते और भगवान् शंकर का भी आनन्द बढ़ाते हैं, उन भक्तानन्दवर्धन मयूरेश गणेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ ।

Shlok-gyan--472

तमः स्तोमहारनं जनाज्ञानहारं त्रयीवेदसारं परब्रह्मसारम् ।

मुनिज्ञानकारं विदूरेविकारं सदा ब्रह्मरुपं गणेशं नमामः ॥

भावार्थ :-

जो अज्ञानान्धकार राशि के नाशक, भक्तजनों के अज्ञान के निवारक, तीनों वेदों के सारस्वरूप, परब्रह्मसार, मुनियों को ज्ञान देनेवाले तथा मनोविकारों से सदा दूर रहनेवाले हैं । उन ब्रह्मरूप गणेश को हम नमस्कार करते हैं ।

Shlok-gyan--473

सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।

सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

भावार्थ :-

जो समस्त वस्तुविषयक अज्ञान के निवारक, सम्पूर्ण ज्ञान के उद्घावक, पवित्र, सत्य-ज्ञानस्वरूप तथा सत्यनामधारी हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।