Shlok Gyan

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Shlok-gyan--442

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।

भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये ॥

भावार्थ :-

भक्तके हृदयमें वास करनेवाले गौरी पुत्र विनायक को वंदन करने के पश्चात , दीर्घायु , सुख -समृद्धि एवं सर्व इच्छा पूर्ति हेतु उनका अखंड स्मरण करना चाहिए !

Shlok-gyan--443

नमस्ते योगरूपाय सम्प्रज्ञातशरीरिणे ।

असम्प्रज्ञातमूर्ध्ने ते तयोर्योगमयाय च ॥

भावार्थ :-

हे गणेश्वर ! सम्प्रज्ञात समाधि आपका शरीर तथा असम्प्रज्ञात समाधि आपका मस्तक है । आप दोनों के योगमय होने के कारण योगस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--444

वामाङ्गे भ्रान्तिरूपा ते सिद्धिः सर्वप्रदा प्रभो ।

भ्रान्तिधारकरूपा वै बुद्धिस्ते दक्षिणाङ्गके ॥

भावार्थ :-

प्रभो ! आपके वामांग में भ्रान्तिरूपा सिद्धि विराजमान हैं, जो सब कुछ देनेवाली हैं तथा आपके दाहिने अंग में भ्रान्तिधारक रूपवाली बुद्धि देवी स्थित हैं ।

Shlok-gyan--445

मायासिद्धिस्तथा देवो मायिको बुद्धिसंज्ञितः ।

तयोर्योगे गणेशान त्वं स्थितोऽसि नमोऽस्तु ते ॥

भावार्थ :-

भ्रान्ति अथवा माया सिद्धि है और उसे धारण करनेवाले गणेशदेव मायिक हैं । बुद्धि संज्ञा भी उन्ही की है । हे गणेश्वर ! आप सिद्धि और बुद्धि दोनों के योग में स्थित हैं । आपको बारम्बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--446

जगद्रूपो गकारश्च णकारो ब्रह्मवाचकः ।

तयोर्योगे गणेशाय नाम तुभ्यं नमो नमः ॥

भावार्थ :-

गकार जगत्स्वरूप है और णकार ब्रह्मका वाचक है । उन दोनों के योग में विद्यमान आप गणेश-देवता को बारम्बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--447

चौरवद्भोगकर्ता त्वं तेन ते वाहनं परम् ।

मूषको मूषकारूढो हेरम्बाय नमो नमः ॥

भावार्थ :-

आप चौर की भाँति भोगकर्ता हैं, इसलिए आपका उत्कृष्ट वाहन मूषक है । आप मूषक पर आरूढ़ हैं । आप हेरम्ब को बारम्बार नमस्कार है ।

Shlok-gyan--448

किं स्तौमि त्वां गणाधीश योगशान्तिधरं परम् ।

वेदादयो ययुः शान्तिमतो देवं नमाम्यहम्॥

भावार्थ :-

गणाधीश ! आप योगशान्तिधारी उत्कृष्ट देवता हैं, मैं आपको क्या स्तुति कर सकता हूँ ! आपकी स्तुति करने में तो वेद आदि भी शान्ति धारण कर लेते हैं अतः मैं आप गणेश देवता को नमस्कार करता हूँ ।

Shlok-gyan--450

ब्रह्मभ्यो ब्रह्मदात्रे च गजानन नमोऽस्तु ते ।

आदिपूज्याय ज्येष्ठाय ज्येष्ठराजाय ते नमः ॥

भावार्थ :-

आप ब्राह्मणों को ब्रह्म देते हैं, हे गजानन ! आपको नमस्कार है । आप प्रथम पूजनीय, ज्येष्ठ और ज्येष्ठराज हैं, आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--451

अनामयाय सर्वाय सर्वपूज्याय ते नमः ।

सगुणाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मणे निर्गुणाय च ॥

भावार्थ :-

आप रोगरहित, सर्वस्वरूप और सबके पूजनीय हैं आपको नमस्कार है । आप ही सगुन और निर्गुण ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है ।

Shlok-gyan--452

गजवक्त्रं सुरश्रेष्ठं कर्णचामरभूषितम् ।

पाशाङ्कुशधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम् ॥

भावार्थ :-

हाथी के मुख वाले देवताओं में श्रेष्ठ, कर्णरूपी चामरों से विभूषित तथा पाश एवं अंकुश को धारण करनेवाले भगवान् गणनायक गणेश की मैं वन्दना करता हूँ ।