अशोक बिंदुसार मौर्य

अशोक बिंदुसार मौर्य

अशोक बिंदुसार मौर्य

(धर्माराजिका चक्रवात, सम्राट, राज्ञश्रेष्ठ, मगधराज, भूपतिं, मौर्यराजा, अशोक, धर्माशोक, असोक्वाध्हन, अशोकवर्धन, प्रजापिता, धर्मनायक)

जन्म: 304 ईसा पूर्व (संभावित), पाटलिपुत्र (पटना)
मृत्यु: 232 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र, पटना
पिता: राजा बिंदुसार
माता: महारानी धर्मा, शुभद्रांगी
जीवनसंगी: रानी पद्मावती, तिश्यारक्षा, महारानी देवी, करुवकी
बच्चे: कुणाल, महिंदा, संघमित्रा, जालुक, चारुमति, तिवाला
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : बौद्ध

आरंभिक जीवन:--

चक्रवर्ती अशोक सम्राट बिन्दुसार तथा रानी धर्मा का पुत्र था। लंका की परम्परा में बिंदुसार की सोलह पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है। पुत्रों में केवल तीन के नामोल्लेख हैं, वे हैं - सुसीम जो सबसे बड़ा था, अशोक और तिष्य। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। एक दिन धर्मा को स्वप्न आया कि उसका बेटा एक बहुत बड़ा सम्राट बनेगा। उसके बाद उसे राजा बिन्दुसार ने अपनी रानी बना लिया। चूँकि धर्मा क्षत्रिय कुल से नहीं थी, अतः उसको कोई विशेष स्थान राजकुल में प्राप्त नहीं था। अशोक के कई (सौतेले) भाई -बहने थे। बचपन में उनमें कड़ी प्रतिस्पर्धा रहती थी। अशोक के बारे में कहा जाता है कि वो बचपन से सैन्य गतिविधियों में प्रवीण था। दो हज़ार वर्षों के पश्चात्, सम्राट अशोक का प्रभाव एशिया मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप में देखा जा सकता है। अशोक काल में उकेरा गया प्रतीतात्मक चिह्न, जिसे हम 'अशोक चिह्न' के नाम से भी जानते हैं, आज भारत का राष्ट्रीय चिह्न है। बौद्ध धर्म के इतिहास में गौतम बुद्ध के पश्चात् सम्राट अशोक का ही स्थान आता है।

दिव्यदान में अशोक की एक पत्‍नी का नाम 'तिष्यरक्षिता' मिलता है। उसके लेख में केवल उसकी पत्‍नी 'करूणावकि' है। दिव्यादान में अशोक के दो भाइयों सुसीम तथा विगताशोक का नाम का उल्लेख है।


सम्राट अशोक का बचपन :--

राजवंश परिवार में पैदा हुए सम्राट अशोक बचपन से ही बेहद प्रतिभावान और तीव्र बुद्धि के बालक थे। शुरु से ही उनके अंदर युद्ध और सैन्य कौशल के गुण दिखाई देने लगे थे, उनके इस गुण को निखारने के लिए उन्हें शाही प्रशिक्षण भी दिया गया था। इसके साथ ही सम्राट अशोक तीरंदाजी में ही शुरु से ही कुशल थे, इसलिए वे एक उच्च श्रेणी के शिकारी भी कहलाते थे।

भारतीय इतिहास के इस महान योद्धा के अंदर लकड़ी की एक छड़ी से ही एक शेर को मारने की अद्भुत क्षमता थी। सम्राट अशोक एक जिंदादिल शिकारी और साहसी योद्धा भी थे। उनके इसी गुणों के कारण उन्हें उस समय मौर्य साम्राज्य के अवन्ती में हो रहे दंगो को रोकने के लिये भेजा गया था।

सम्राट अशोक की विलक्षण प्रतिभा की वजह से ही वे बेहद कम उम्र में ही अपने पिता के राजकाज को संभालने लगे थे। वे अपनी प्रजा का भी बेहद ख्याल रखते थे। इसी वजह से वे अपने प्रजा के चहेते शासक भी थे। वहीं सम्राट अशोक की विलक्षण प्रतिभा और अच्छे सैन्य गुणों की वजह से उनके पिता बिन्दुसार भी उनसे बेहद प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने सम्राट अशोक को बेहद कम उम्र में ही मौर्य वंश की राजगद्दी सौंप दी थी।

चक्रवर्ती सम्राट अशोक का साम्राज्य विस्तार:--

अशोक का ज्येष्ठ भाई सुशीम उस समय तक्षशिला का प्रान्तपाल था। तक्षशिला में भारतीय-यूनानी मूल के बहुत लोग रहते थे। इससे वह क्षेत्र विद्रोह के लिए उपयुक्त था। सुशीम के अकुशल प्रशासन के कारण भी उस क्षेत्र में विद्रोह पनप उठा। राजा बिन्दुसार ने सुशीम के कहने पर राजकुमार अशोक को विद्रोह के दमन के लिए वहाँ भेजा। अशोक के आने की खबर सुनकर ही विद्रोहियों ने उपद्रव खत्म कर दिया और विद्रोह बिना किसी युद्ध के खत्म हो गया। हालाकि यहाँ पर विद्रोह एक बार फिर अशोक के शासनकाल में हुआ था, पर इस बार उसे बलपूर्वक कुचल दिया गया।

अशोक का साम्राज्य:--

अशोक की इस प्रसिद्धि से उसके भाई सुशीम को सिंहासन न मिलने का खतरा बढ़ गया। उसने सम्राट बिंदुसार को कहकर अशोक को निर्वास में डाल दिया। अशोक कलिंग चला गया। वहाँ उसे मत्स्यकुमारी कौर्वकी से प्यार हो गया। हाल में मिले साक्ष्यों के अनुसार बाद में अशोक ने उसे तीसरी या दूसरी रानी बनाया था।

इसी बीच उज्जैन में विद्रोह हो गया। अशोक को सम्राट बिन्दुसार ने निर्वासन से बुला विद्रोह को दबाने के लिए भेज दिया। हालाकि उसके सेनापतियों ने विद्रोह को दबा दिया पर उसकी पहचान गुप्त ही रखी गई क्योंकि मौर्यों द्वारा फैलाए गए गुप्तचर जाल से उसके बारे में पता चलने के बाद उसके भाई सुशीम द्वारा उसे मरवाए जाने का भय था। वह बौद्ध सन्यासियों के साथ रहा था। इसी दौरान उसे बौद्ध विधि-विधानों तथा शिक्षाओं का पता चला था। यहाँ पर एक सुन्दरी, जिसका नाम देवी था, उससे अशोक को प्रेम हो गया। स्वस्थ होने के बाद अशोक ने उससे विवाह कर लिया।

कुछ वर्षों के बाद सुशीम से तंग आ चुके लोगों ने अशोक को राजसिंहासन हथिया लेने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि सम्राट बिन्दुसार वृद्ध तथा रुग्ण हो चले थे। जब वह आश्रम में थे तब उनको खबर मिली की उनकी माँ को उनके सौतेले भाईयों ने मार डाला, तब उन्होने महल में जाकर अपने सारे सौतेले भाईयों की हत्या कर दी और सम्राट बने।

सत्ता संभालते ही अशोक ने पूर्व तथा पश्चिम, दोनों दिशा में अपना साम्राज्य फैलाना शुरु किया। उसने आधुनिक असम से ईरान की सीमा तक साम्राज्य केवल आठ वर्षों में विस्तृत कर लिया।

अशोका और कलिंगा घमासान युध्द :--

तक़रीबन 261 ईसापूर्व  में भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली और ताकतवर योद्धा सम्राट अशोक ने अपने मौर्य सम्राज्य का विस्तार करने के लिए कलिंग (वर्तमान ओडिशा) राज्य पर आक्रमण कर दिया और इसके खिलाफ एक विध्वंशकारी युद्ध की घोषणा की थी।


इस भीषण युद्ध में करीब 1 लाख लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई, मरने वालों में सबसे ज्यादा संख्या सैनिकों की थी। इसके साथ ही इस युद्ध में करीब डेढ़ लाख लोग बुरी तरह घायल हो गए। इस तरह सम्राट अशोक कलिंग पर अपना कब्जा जमाने वाले मौर्य वंश के सबसे पहले शासक तो बन गए, लेकिन इस युध्द में हुए भारी रक्तपात ने उन्हें हिलाकर रख दिया।

कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक का ह्रद्य परिवर्तन एवं बौद्ध धर्म अपनाना 

कलिंग युद्ध के विध्वंशकारी युद्ध में कई सैनिक, महिलाएं और मासूमों बच्चों की मौत एवं रोते-बिलखते घर परिवार देख सम्राट अशोक का ह्रद्य परिवर्तन हो गया। इसके बाद सम्राट अशोक ने सोचा कि यह सब लालच का दुष्परिणाम है साथ ही उन्होंने अपने जीवन में फिर कभी युध्द नहीं लड़ने का संकल्प लिया।

263 ईसा पूर्व में मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक ने धर्म परिवर्तन का मन बना लिया था। उन्होंने बौध्द धर्म अपना लिया एवं ईमानदारी, सच्चाई एवं शांति के पथ पर चलने की सीख ली और वे अहिंसा के पुजारी हो गये।

बौद्ध धर्म के प्रचारक के रुप में सम्राट अशोक –

बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सम्राट अशोक एक महान शासक एवं एक धर्मपरायण योद्धा के रुप में सामने आए। इसके बाद उन्होंने अपने मौर्य सम्राज्य के सभी लोगों को अहिंसा का मार्ग अपनाने और भलाई कामों को करने की सलाह दी और उन्होंने खुद भी कई लोकहित के काम किए साथ ही उन्हें शिकार और पशु हत्या करना पूरी तरह छोड़ दिया।

ब्राह्मणों को खुलकर दान किया एवं कई गरीबों एवं असहाय की सेवा की। इसके साथ ही जरूरतमंदों के इलाज के लिए अस्पताल खोला, एवं सड़कों का निर्माण करवाया यही नहीं सम्राट अशोक ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार को लेकर 20 हजार से भी ज्यादा विश्वविद्यालयों की नींव रखी।

ह्रद्यय परिवर्तन के बाद सम्राट अशोक ने सबसे पहले पूरे एशिया में बौध्द धर्म का जोरो-शोरों से प्रचार किया। इसके लिए उन्होंने कई धर्म ग्रंथों का सहारा लिया। इस दौरान सम्राट अशोक ने दक्षिण एशिया एवं मध्य एशिया में भगवान बुद्ध के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए करीब 84 हजार स्तूपों का निर्माण भी कराया।

जिनमें वाराणसी के पास स्थित सारनाथ एवं मध्यप्रदेश का सांची स्तूप काफी मशहूर हैं, जिसमें आज भी भगवान बुद्ध के अवशेषों को देखा जा सकता है। अशोका के अनुसार बुद्ध धर्म सामाजिक और राजनैतिक एकता वाला धर्म था। बुद्ध का प्रचार करने हेतु उन्होंने अपने राज्य में जगह-जगह पर भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमाएं स्थापित की। और बुद्ध धर्म का विकास करते चले गये। बौध्द धर्म को अशोक ने ही विश्व धर्म के रूप में मान्यता दिलाई।

बौध्द धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा तक को भिक्षु-भिक्षुणी के रूप में अशोक ने भारत के बाहर, नेपाल, अफगानिस्तान, मिस्त्र, सीरिया, यूनान, श्रीलंका आदि में भेजा। वहीं बौद्ध धर्म के प्रचारक के रुप में सबसे ज्यादा सफलता उनके बेटे महेन्द्र को मिली, महेन्द्र ने श्री लंका के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म के उपदेशों के बारे में बताया, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना दिया।

सार्वजानिक कल्याण के लिये उन्होंने जो कार्य किये वे तो इतिहास में अमर ही हो गये हैं। नैतिकता, उदारता एवं भाईचारे का संदेश देने वाले अशोक ने कई अनुपम भवनों तथा देश के कोने-कोने में स्तंभों एवं शिलालेखों का निर्माण भी कराया जिन पर बौध्द धर्म के संदेश अंकित थे।

‘अशोक चक्र’ एवं शेरों की ‘त्रिमूर्ति’ – महान अशोक की देन – 

भारत का राष्ट्रीय चिह्न ‘अशोक चक्र’ तथा शेरों की ‘त्रिमूर्ति’ भी अशोक महान की ही देंन है। ये कृतियां अशोक निर्मित स्तंभों और स्तूपों पर अंकित हैं। सम्राट अशोक का अशोक चक्र जिसे धर्म चक्र भी कहा जाता है, आज वह हमें भारतीय गणराज्य के तिरंगे के बीच में दिखाई देता है। ‘त्रिमूर्ति’ सारनाथ (वाराणसी) के बौध्द स्तूप के स्तंभों पर निर्मित शिलामूर्तियों की प्रतिकृति है।

सम्राट अशोक का महान व्यक्तित्व – 

भारतीय इतिहास के महान योद्धा सम्राट अशोक ने अपने-आप को कुशल प्रशासक सिध्द करते हुए बेहद कम समय में ही अपने राज्य में शांति स्थापित की। उनके शासनकाल में देश ने विज्ञान और तकनीक के साथ-साथ चिकित्सा शास्त्र में काफी तरक्की की। उसने धर्म पर इतना जोर दिया कि प्रजा इमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलने लगी।

चोरी और लूटपाट की घटानाएं बिलकुल ही बंद हो गईं। अशोक घोर मानवतावादी थे। वह रात-दिन जनता की भलाई के लिए काम  किया करते थे। उन्हें विशाल साम्राज्य के किसी भी हिस्से में होने वाली घटना की जानकारी रहती थी।

धर्म के प्रति कितनी आस्था थी, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह बिना एक हजार ब्राम्हणों को भोजन कराए स्वयं कुछ नहीं खाते थे, कलिंग युध्द अशोका के जीवन का आखरी युध्द था, जिससे उनका जीवन ही बदल गया था।

सम्राट अशोक के बारे में कुछ दिलचस्प एवं रोचक तथ्य – 

  1. अशोका के नाम “अशोक” का अर्थ “दर्दरहित और चिंतामुक्त” होता है। अपने आदेशपत्र में उन्हें प्रियदर्शी एवं देवानाम्प्रिय कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोका का नाम अशोक के पेड़ से ही लिया गया था।
  2. आउटलाइन ऑफ़ हिस्ट्री इस किताब में अशोका में बारे में यह लिखा है की, “इतिहास में अशोका को हजारो नामो से जानते है, जहां जगह-जगह पर उनकी वीरता के किस्से उल्लेखित है, उनकी गाथा पूरे इतिहास में प्रचलित है, वे एक सर्वप्रिय, न्यायप्रिय, दयालु और शक्तिशाली सम्राट थे।
  3. लोकहित के नजरिये से यदि देखा जाये तो सम्राट अशोक ने अपने समय में न केवल मानवों की चिंता की बल्कि उन्होंने जीवमात्र के लिए भी कई सराहनीय काम किए हैं। इसलिए सम्राट अशोक को अहिंसा, शांति, लोक कल्याणकारी नीतियों के लिए एक अतुलनीय और महान अशोक के रुप में जाना जाता था।
  4. सम्राट अशोक को एक निडर एवं साहसी राजा और योद्धा माना जाता था।
  5. अपने शासनकाल के समय में सम्राट अशोक अपने साम्राज्य को भारत के सभी उपमहाद्वीपो तक पहुचाने के लिये लगातार 8 वर्षो तक युद्ध लड़ते रहे। इसके चलते सम्राट अशोक ने कृष्ण गोदावरी के घाटी, दक्षिण में मैसूर में भी अपना कब्ज़ा कर लिया, लेकिन वे तमिलनाडू, केरल और श्रीलंका पर शासन नहीं कर सके।
  6. सम्राट अशोक की कई पत्नियां थी, लेकिन सिर्फ महारानी देवी को ही उनकी रानी माना गया था।
  7. कभी हार नहीं मानने वाले सम्राट अशोक एक महान शासक होने के साथ-साथ एक अच्छे दार्शनिक भी थे।
  8. भारतीय इतिहास के अद्धितीय शासक अशोक ने लोगों को शिक्षा के महत्व को समझाया एवं इसका जमकर प्रचार-प्रसार भी किया, आपको बता दें कि उन्होंने अपने जीवनकाल में 20 से ज्यादा विश्वविद्यालयों की स्थापना की थी।
  9. मौर्य वंश में 40 साल के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले सम्राट अशोक ही एक मात्र शासक थे।
  10. सम्राट अशोक भारतीय इतिहास के एक ऐसे य़ोद्धा थे, जो अपने जीवनकाल में कभी हार का सामना नहीं किया।
  11. महान शासक सम्राट अशोक का अशोक चिन्ह आज के गौरवमयी भारत को दर्शाता है।
  12. सम्राट अशोक के द्धारा बौद्ध धर्म का पूरे विश्व में प्रचार-प्रसार करने एवं भगवान बुद्ध के उपदेशों को लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्हें बौद्ध धर्म के प्रचारक के रुप में भी जाना जाता है।
  13. सम्राट अशोक ने अपने सिद्धांतों को धम्म नाम दिया था।
  14. सम्राट अशोक जैसा महान शासक शायद ही इतिहास में कोई दूसरा हो। वे एक आकाश में चमकने वाले तारे की तरह है जो हमेशा चमकता ही रहता है, भारतीय इतिहास का यही चमकता तारा सम्राट अशोका है।
  15. एक विजेता, दार्शनिक एवं प्रजापालक शासक के रूप में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा। उन्होंने जो त्याग एवं कार्य किए वैसा इतिहास में दूसरा कोई नहीं कर सका। सम्राट अशोका एक आदर्श सम्राट थे।
  16. इतिहास में अगर हम देखे तो उनके जैसा निडर सम्राट ना कभी हुआ ना ही कभी होंगा। उनके रहते मौर्य साम्राज्य पर कभी कोई विपत्ति नहीं आयी।


बौद्ध धर्म :--

तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया मध्य प्रदेश में साँची का स्तूप

कलिंग युद्ध में हुई क्षति तथा नरसंहार से उसका मन युद्ध से उब गया और वह अपने कृत्य को लेकर व्यथित हो उठा। इसी शोक से उबरने के लिए वह बुद्ध के उपदेशों के करीब आता गया और अंत में उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।

बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद उसने उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी किया। उसने शिकार तथा पशु-हत्या करना छोड़ दिया। उसने ब्राह्मणों एवं अन्य सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान देना भी आरंभ किया। और जनकल्याण के लिए उसने चिकित्सालय, पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण करवाया।

सम्राट अशोक के चार मुखी शेरों का थाईलैण्ड में पाया गया शिल्प

उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धर्म प्रचारकों को नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र तथा यूनान भी भेजा। इसी कार्य के लिए उसने अपने पुत्र एवं पुत्री को भी यात्राओं पर भेजा था। अशोक के धर्म प्रचारकों में सबसे अधिक सफलता उसके पुत्र महेन्द्र को मिली। महेन्द्र ने श्रीलंका के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया, और तिस्स ने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना लिया और अशोक से प्रेरित होकर उसने स्वयं को 'देवनामप्रिय' की उपाधि दी।

अशोक के शासनकाल में ही पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता मोगाली पुत्र तिष्या ने की। यहीं अभिधम्मपिटक की रचना भी हुई और बौद्ध भिक्षु विभिन्‍न देशों में भेजे गये जिनमें अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा भी सम्मिलित थे, जिन्हें श्रीलंका भेजा गया।

अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और साम्राज्य के सभी साधनों को जनता के कल्याण हेतु लगा दिया। अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित साधन अपनाये-

(क) धर्मयात्राओं का प्रारम्भ,

(ख) राजकीय पदाधिकारियों की नियुक्‍ति,

(ग) धर्म महापात्रों की नियुक्‍ति,

(घ) दिव्य रूपों का प्रदर्शन,

(च) धर्म श्रावण एवं धर्मोपदेश की व्यवस्था,

(छ) लोकाचारिता के कार्य,

(ज) धर्मलिपियों का खुदवाना,

(झ) विदेशों में धर्म प्रचार को प्रचारक भेजना आदि।

अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार का प्रारम्भ धर्मयात्राओं से किया। वह अभिषेक के 10 वें वर्ष बोधगया की यात्रा पर गया। कलिंग युद्ध के बाद आमोद-प्रमोद की यात्राओं पर पाबन्दी लगा दी। अपने अभिषेक २०वें वर्ष में लुम्बिनी ग्राम की यात्रा की। नेपाल तराई में स्थित निगलीवा में उसने कनकमुनि के स्तूप की मरम्मत करवाई। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने साम्राज्य के उच्च पदाधिकारियों को नियुक्‍त किया। स्तम्भ लेख तीन और सात के अनुसार उसने व्युष्ट, रज्जुक, प्रादेशिक तथा युक्‍त नामक पदाधिकारियों को जनता के बीच जाकर धर्म प्रचार करने और उपदेश देने का आदेश दिया।

अभिषेक के १३वें वर्ष के बाद उसने बौद्ध धर्म प्रचार हेतु पदाधिकारियों का एक नया वर्ग बनाया जिसे 'धर्म महापात्र' कहा गया था। इसका कर्य विभिन्‍न धार्मिक सम्प्रदायों के बीच द्वेषभाव को मिटाकर धर्म की एकता स्थापित करना था।

विद्वानों अशोक की तुलना विश्‍व इतिहास की विभूतियाँ कांस्टेटाइन, ऐटोनियस,सेन्टपॉल, नेपोलियन सीजर के साथ की है।

अशोक अहिंसा, शान्ति तथा लोक कल्याणकारी नीतियों के विश्‍वविख्यात तथा अतुलनीय सम्राट हैं। एच. जी. वेल्स के अनुसार अशोक का चरित्र “इतिहास के स्तम्भों को भरने वाले राजाओं, सम्राटों, धर्माधिकारियों, सन्त-महात्माओं आदि के बीच प्रकाशमान है और आकाश में प्रायः एकाकी तारा की तरह चमकता है।"

सम्राट अशोक से जुड़ी हुई कुछ प्रश्न और उत्तर ---

  1. मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य थे।
  2. और, चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिन्दुसार थे।
  3. तथा, बिन्दुसार के पुत्र का नाम Ashoka था।
  4. अशोक का जन्म ३०४ (304) ईसा पूर्व १३ (13)अप्रैल पाटलिपुत्र, में हुआ था।
  5. जिसे आज पटना के नाम से भी  जाना जाता है।
  6. जो आधुनिक बिहार राज्य पर स्थित है।
  7. अशोक के माता का नाम धर्मा थी।
  8. जो, राजा बिन्दुसार की रानी थी।
  9. और, राजा बिंदुसार की सोलह पटरानियों और १०१ (101) पुत्रों थे।
  10. परंतु, राजा बिंदुसार के पुत्रों में केवल तीन पुत्रों के नाम उल्लेख है,
  11. इन तीन पुत्रों के नाम थे, सुशीम, अशोक और तिष्य।
  12. इनमे से तिष्य अशोक का सहोदर (sibling) भाई था।
  13. जबकि सुशीम सबसे बड़ा था।
  14. लेकिन, इन सभी पटरानियों में से रानी धर्मा क्षत्रिय कुल से नहीं थी।
  15. इसी कारण रानी धर्मा की स्थान राजकुल में विशेष नहीं था।
  16. जिसके फलस्वरूप अशोक के कई सौतेले भाई -बहने के साथ बचपन से ही कड़ी प्रतियोगिता रहती थी।
  17. तथा, अशोक बचपन से ही सैन्य कार्यकलाप में प्रवीण था।      
  18. राज्याभिषेक होने के बाद २६२ (262) ई. पू. में मगध के चक्रवर्ती सम्राट अशोक और कलिंग के राजा अनंत पद्मनाभन के बिच एक भीषण युद्ध हुआ था।
  19. जिसे कलिंग युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
  20. और, आधुनिक भारत के कलिंग वर्तमान में भारत के राज्य ओडिशा है।
  21. और, इस युद्ध का कारण था।
  22. सम्राट अशोक कलिंग पर विजय प्राप्त कर,
  23. आपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
  24. हालाँकि, व्यापारिक दृष्टि से देखा जाए तो कलिंग बहुत महत्वपूर्ण था।
  25. क्यों की दक्षिण भारत को जाने वाले स्थल और समुद्र मार्ग पर कलिंग का नियन्त्रण था।
  26. और, यहा से दक्षिण-पूर्वी देशो से आसानी से सम्बन्ध बनाए जा सकते थे।
  27. इसी कारण, कलिंग युद्ध में मौर्य के १००००० (1,00,000) योद्धाओं,
  28. और, कलिंग के १५०००० (1,50,000) योद्धाओं के बिच में युद्ध में भारी नरसंहार का दृश्य एक भयानक दृष्टि प्रस्तुत करता हे।
  29. हालाँकि, इस युद्ध में कलिंग की सेना बहुत बहादुरी के साथ लड़ी।
  30. लेकिन, अंत में मगध ने जीत हासिल की।
  31. तथा, कलिंग के सैनिक युद्ध के मैदान में मारे गए।
  32. और, इस युद्ध को Samrat Ashok ने अपनी आँखों से देखा था।
  33. क्यों की पूरा कलिंग शहर युद्ध का मैदान में बदल गया था।
  34. और, भारी मात्रा में सैनिकों की लाशों से भरा पड़ा था।
  35. और, कुछ जीवित सैनिक भीषण दर्द में घायल हुए जमीन पर तड़प ते रहे। बच्चे अनाथ हो गए थे, और, विधवाये रोते रोते निराशा की आगोश में समा गया था। इसी मर्मान्तिक दृष्टि को देखकर सम्राट अशोक की हृदय वयाकुल हो गया था। और, कलिंग के इस युद्ध ने सम्राट अशोक के हृदय को महान परिवर्तन कर दिया था | जिसके बाद सम्राट अशोक की हृदय मानवता के प्रति दया और करुणा से भर गया। और, उन्होंने युद्धकार्य को सदा के लिए विराम करने की प्रतिज्ञा की। 
  36. कलिंग युद्ध के बाद Samrat Ashok ने बौद्ध धर्म को अपना धर्म के रूप में स्वीकार कर लिया था।
  37. यहा से सम्राट अशोक ने आध्यात्मिक और धम्म विजय युग का दौर शुरू किया था।
  38. सम्राट अशोक ने अपने शासन काल में चौदह वर्ष के अवधि में निगोथ नामक भिक्षु द्वारा बौद्ध धर्म की शिक्षा लिया। और, बौद्ध धर्म को स्वीकार करने के बाद,
  39. सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की शिक्षा को अपने जीवन में भी उतारने का प्रयास किया था।
  40. बौद्ध कथाओं का ग्रंथ ‘दिव्यावदान’ के अनुसार सम्राट अशोक को दीक्षा देने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को जाता है। तथा, सम्राट अशोक ने जनकल्याण के लिए चिकित्सालय, पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण भी करवाया था। और, बौद्ध धर्म प्रचार के लिए  सम्राट अशोक ने अपने प्रचारक को नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान और यूनान आदि देशो में भी भेजा था।
  41. सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया में तथा, अन्य आज के सभी महाद्विपों में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया था। और, वे प्रेम, सहिष्णूता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे। तथा, सम्राट अशोक के समय काल में ही शिक्षा का अच्छा प्रभाव पाया गया है।
  42. नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे महान विश्वविद्यालय की स्थापना उस समय काल के दौरान की गई थी। तथा, सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य के सभी साधनों को जनता के कल्याण हेतु भी लगा दिया था। और, बौद्ध धर्म के प्रचार पर स्वयम को नियोजित कर लिया था। तथा, सम्राट अशोक के जीवनी में भी उनके जीवनसंगी के वारे में कुछ ज्यादा जानकारी प्राप्त नही है।
  43. ‘दिव्यावदान’ ग्रंथ के अनुसार सम्राट अशोक के जीवनसंगी के नाम थे देवी, तिष्यरक्षिता, कारुवाकी और पद्मावती।
  44. और, संतान थे पुत्र महेन्द्र और कुणाल तथा, पुत्री संघमित्रा के वारे में जानकारी है।                

सम्राट अशोक की मृत्यु :– 

सम्राट अशोक ने करीब 40 सालों तक मौर्य वंश का शासन संभाला। करीब 232 ईसापूर्ऩ के आसपास उनकी मौत हो गई। ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य वंश का सम्राज्य करीब 50 सालों तक चला।

विश्व इतिहास में अशोक महान एक अतुलनीय चरित्र है। उनके जैसा ऐतिहासिक पात्र अन्यत्र दुर्लभ है। भारतीय इतिहास के प्रकाशवान तारे के रूप में वह सदैव जगमगाता रहेंगे।

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