सालासर बालाजी मंदिर
April 20 2025
सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के चुरू जिले में स्थित भगवान हनुमान का प्रसिद्ध मंदिर है। यह जयपुर-बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है और हनुमान भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहाँ के बालाजी की मूर्ति दाढ़ी और मूँछों वाली है, जो इसे अन्य हनुमान मंदिरों से अलग बनाती है।
सालासर बालाजी मंदिर का इतिहास
1. मूर्ति का प्राकट्य (1755 ई.)
विक्रम संवत् 1811 (सन् 1755) में श्रावण शुक्ल नवमी (शनिवार) को नागौर जिले के असोटा गाँव में एक किसान को खेत जोतते समय हल से हनुमान जी की मूर्ति मिली।
मूर्ति को किसान की पत्नी ने अपनी साड़ी से साफ किया और बाजरे के चूरमे का भोग लगाया (आज भी यह प्रसाद चढ़ाया जाता है)।
उसी रात, असोटा के ठाकुर और सालासर के संत मोहनदास जी को स्वप्न में बालाजी ने आदेश दिया कि मूर्ति को सालासर ले जाया जाए।
2. मूर्ति की स्थापना
मोहनदास जी ने मूर्ति को सालासर लाने का प्रबंध किया और कहा कि "जहाँ बैलगाड़ी रुके, वहीं मूर्ति स्थापित होगी।"
बैलगाड़ी सालासर के एक रेत के टीले पर रुकी, और वहाँ श्रावण शुक्ल नवमी को मूर्ति की स्थापना हुई।
3. मंदिर निर्माण (1759 ई.)
विक्रम संवत् 1815 (सन् 1759) में मोहनदास जी ने नूर मोहम्मद और दाऊ नामक कारीगरों से मंदिर बनवाया।
मंदिर में अखंड ज्योति प्रज्वलित की गई, जो आज भी जल रही है।
मोहनदास जी ने अपने शिष्य उदयराम जी को मंदिर की सेवा सौंपी और विक्रम संवत् 1850 (1794 ई.) में जीवित समाधि ले ली।
4. विशेष मान्यताएँ
यहाँ दाढ़ी-मूँछ वाले हनुमान जी की पूजा होती है, क्योंकि मोहनदास जी को स्वप्न में बालाजी ने इसी रूप में दर्शन दिए थे।
भक्त मन्नत का नारियल (मनोती) बाँधते हैं, जिसे पूरा होने पर चढ़ाया जाता है।
चैत्र और आश्विन पूर्णिमा पर विशाल मेले लगते हैं, जहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं।
5. ऐतिहासिक महत्व
यह मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है, क्योंकि इसका निर्माण एक मुस्लिम कारीगर ने करवाया था।
मोहनदास जी की समाधि और अखंड धूणा (अग्नि) आज भी मंदिर परिसर में हैं।
सालासर बालाजी मंदिर की पौराणिक कथा
1. असोटा गाँव में मूर्ति का प्रकट होना
विक्रम संवत् 1811 (सन् 1754) में श्रावण शुक्ल नवमी (शनिवार) के दिन राजस्थान के नागौर जिले के असोटा गाँव में एक अद्भुत घटना घटी। एक किसान अपने खेत में हल जोत रहा था कि अचानक हल किसी कठोर वस्तु से टकराया। जब उसने मिट्टी खोदकर देखा, तो हनुमान जी की मूर्ति प्रकट हुई।
किसान की पत्नी उस समय उसके लिए भोजन लेकर आई। दोनों ने मूर्ति को साड़ी से साफ किया और बाजरे के चूरमे का भोग लगाया। तभी से आज तक बालाजी को बाजरे का चूरमा चढ़ाया जाता है।
2. स्वप्नादेश और मूर्ति का सालासर आगमन
उसी रात, असोटा के ठाकुर को स्वप्न में हनुमान जी प्रकट हुए और कहा—
"इस मूर्ति को चुरू जिले के सालासर गाँव में भेज दो।"
वहीं, सालासर के एक संत मोहनदास जी को भी स्वप्न में बालाजी ने दर्शन देकर कहा—
"मेरी मूर्ति असोटा से आ रही है, तुम उसकी अगवानी के लिए जाओ।"
जब ठाकुर को पता चला कि मोहनदास जी को बिना बताए ही यह ज्ञान हो गया, तो वे हैरान रह गए। उन्होंने मूर्ति को एक बैलगाड़ी में सजाकर सालासर भेज दिया।
3. मूर्ति की स्थापना और चमत्कार
मोहनदास जी ने कहा— "जहाँ बैलगाड़ी स्वयं रुकेगी, वहीं मूर्ति स्थापित होगी।"
कुछ दूर चलने के बाद, बैल सालासर के एक रेतीले टीले पर रुक गए। वहाँ श्रावण शुक्ल नवमी (1754 ई.) को मूर्ति की स्थापना की गई।
4. मंदिर निर्माण और मोहनदास जी की समाधि
विक्रम संवत् 1815 (1759 ई.) में मोहनदास जी ने मंदिर बनवाया।
उन्होंने अपने शिष्य उदयराम जी को मंदिर की सेवा सौंपी।
विक्रम संवत् 1850 (1794 ई.) में मोहनदास जी ने जीवित समाधि ले ली।
5. विशेष मान्यताएँ
यहाँ दाढ़ी-मूँछ वाले हनुमान जी की पूजा होती है, क्योंकि मोहनदास जी को स्वप्न में बालाजी ने इसी रूप में दर्शन दिए थे।
भक्त मन्नत का नारियल (मनोती) बाँधते हैं, जो पूरी होने पर चढ़ाया जाता है।
चैत्र व आश्विन पूर्णिमा पर विशाल मेले लगते हैं।
सालासर बालाजी मंदिर के प्रमुख आकर्षण
1. श्री बालाजी मुख्य मंदिर
विशिष्ट मूर्ति: भगवान हनुमान की दाढ़ी-मूँछ युक्त अद्वितीय मूर्ति (भारत में एकमात्र), जो स्थापना के समय से ही यहाँ विराजमान है।
मनोती का नारियल: भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए नारियल बाँधते हैं। मन्नत पूरी होने पर नारियल चढ़ाने की प्रथा है।
भोग: बूंदी के लड्डू, बाजरे का चूरमा, पेड़े, और बेसन की बर्फी का भोग लगाया जाता है।
2. मोहनदास जी का धूंणा और समाधि
अखंड ज्योति: मोहनदास जी द्वारा प्रज्वलित पवित्र अग्नि जो 1755 से लगातार जल रही है। भक्त इसे "धूंणा" कहते हैं और राख को पवित्र मानकर ले जाते हैं।
समाधि स्थल: मोहनदास जी और उनकी बहन (कनिदादी) के पैरों के निशान यहाँ संरक्षित हैं।
निरंतर रामायण पाठ: पिछले 8 वर्षों से यहाँ अनवरत रामचरितमानस का पाठ चल रहा है।
3. श्री अंजनी माता मंदिर
स्थान: मुख्य मंदिर से 2 किमी दूर (लक्ष्मणगढ़ रोड पर)।
महत्व: हनुमान जी की माता अंजनी का मंदिर, जहाँ दर्शन करना शुभ माना जाता है।
4. शयनन माता मंदिर
स्थान: सालासर से 15 किमी दूर एक पहाड़ी पर।
विशेषता: 1100 साल पुराना मंदिर, जो रेगिस्तानी इलाके में स्थित है। मान्यता है कि यहाँ देवी शयनन माता की कृपा से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं।
5. सेठानी का जोहरा
ऐतिहासिक स्थल: यह स्थान राजपूताने की वीरांगनाओं के जौहर (सामूहिक बलिदान) की याद दिलाता है।
6. खाटू श्याम जी मंदिर
दूरी: सालासर से 80 किमी दूर।
महत्व: भगवान श्री कृष्ण के अवतार बाबा श्याम का प्रसिद्ध मंदिर, जहाँ "सिर चढ़ाने" की परंपरा है।
7. वार्षिक मेले और उत्सव
हनुमान जन्मोत्सव: चैत्र पूर्णिमा (मार्च-अप्रैल) पर विशाल शोभायात्रा और भंडारे का आयोजन।
आश्विन पूर्णिमा मेला: सितंबर-अक्टूबर में लगने वाला मेला, जहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं।
निःशुल्क भोजन: मेलों के दौरान भक्तों के लिए लंगर और प्रसाद वितरण।
8. सुविधाएँ
धर्मशालाएँ: यात्रियों के ठहरने के लिए कई साफ-सुथरी धर्मशालाएँ।
भोजनालय: शुद्ध शाकाहारी भोजन और प्रसाद की दुकानें।
नोट
सालासर बालाजी की यात्रा करने वाले भक्त अक्सर "खाटू श्याम-सालासर धाम यात्रा" को एक साथ पूरा करते हैं। यहाँ का शांत वातावरण और आध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को गहन शांति प्रदान करती है।
श्री सालासर बालाजी मंदिर की वास्तुकला: एक दिव्य संगम
श्री सालासर बालाजी मंदिर राजस्थानी वास्तुकला और भक्ति कला का अद्भुत उदाहरण है। यह मंदिर न केवल अपनी आध्यात्मिक महिमा, बल्कि सांस्कृतिक समन्वय और स्थापत्य कला के लिए भी प्रसिद्ध है। आइए, इसकी वास्तुकला की प्रमुख विशेषताओं को विस्तार से जानें:
1. मंदिर का बाह्य स्वरूप
शिखर (गुंबद): मंदिर के मुख्य शिखर को राजस्थानी नागर शैली में बनाया गया है, जिस पर सुनहरे कलश और ध्वजा (निशान) सुशोभित हैं।
प्रवेश द्वार: मंदिर परिसर में तीन विशाल द्वार हैं, जिन पर हनुमान जी की लीलाओं से जुड़ी चित्रकारी और मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।
ऊँचाई: मंदिर लगभग 100 फीट ऊँचा है, जिसका शिखर दूर से ही दर्शनार्थियों को आकर्षित करता है।
2. आंतरिक संरचना और मंडप
गर्भगृह (सैन्क्टम सेन्क्टोरम):
यहाँ दाढ़ी-मूँछ युक्त बालाजी की मूर्ति विराजमान है, जिसे संगमरमर से बनाया गया है।
मूर्ति की ऊँचाई लगभग 3.5 फीट है, और इसे रत्नजड़ित मुकुट से सजाया गया है।
गर्भगृह के ऊपर सोने की परत चढ़ा हुआ छत्र है।
सभा मंडप:
गर्भगृह के सामने विशाल सभा मंडप है, जहाँ भक्त ध्यान और आरती में शामिल होते हैं।
मंडप की छत पर रामायण और महाभारत के दृश्यों को चित्रित किया गया है।
स्तंभों की कलात्मक नक्काशी:
मंडप के लाल बलुआ पत्थर के स्तंभों पर फूल-पत्तियों, देवी-देवताओं, और पौराणिक जीवों की बारीक नक्काशी की गई है।
3. विशिष्ट स्थापत्य तत्व
अखंड ज्योति (धूंणा):
मंदिर परिसर में मोहनदास जी द्वारा प्रज्वलित अग्नि 1755 से लगातार जल रही है। इसके चारों ओर संगमरमर की जाली बनी हुई है।
निशान (ध्वजा):
मंदिर के शिखर पर लगा पीले और लाल रंग का निशान हनुमान जी की शक्ति और विजय का प्रतीक है। इसे मोर पंख से सजाया जाता है, जो सजगता का प्रतीक है।
कल्पवृक्ष की छाया:
मंदिर परिसर में एक पुराना पीपल का वृक्ष है, जिसे भक्त कल्पवृक्ष मानते हैं। मान्यता है कि इसकी छाया में बैठने से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
4. सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक
हिंदू-मुस्लिम सहयोग:
मंदिर का निर्माण मुस्लिम कारीगरों नूर मोहम्मद और दाऊ ने किया, जो सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है।
मुख्य मंदिर की दीवारों पर अरबी डिज़ाइन और हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों का सहज संगम देखा जा सकता है।
राजस्थानी और मुगल शैली:
मंदिर की छतरियाँ और मेहराब मुगल वास्तुकला से प्रेरित हैं, जबकि मूर्तियाँ और शिखर शुद्ध राजस्थानी शैली में बने हैं।
5. आधुनिक विस्तार और सुविधाएँ
धर्मशालाएँ और भोजनालय:
परिसर में सफेद संगमरमर से बनी कई धर्मशालाएँ हैं, जिनकी छतों पर जालीदार नक्काशी की गई है।
अन्नपूर्णा भंडार में भक्तों के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था है।
प्रशासनिक भवन:
मंदिर प्रबंधन के कार्यालय राजस्थानी हवेली शैली में बने हैं, जिनके दरवाजों पर पीतल की कीलें लगी हैं।
6. प्रतीकात्मकता और दार्शनिक महत्व
तीन द्वार: ये भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि के प्रतीक हैं।
स्तंभों की संख्या: मंडप के 24 स्तंभ 24 तीर्थंकरों या दिव्य गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
लाल रंग: मंदिर की दीवारों पर प्रमुख लाल रंग शक्ति और भक्ति का संकेत देता है।
श्री सालासर बालाजी मंदिर की चमत्कारिक कथाएँ: आस्था और अद्भुत लीलाएँ
श्री सालासर बालाजी मंदिर न केवल अपनी वास्तुकला, बल्कि चमत्कारों और दिव्य अनुभवों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ आने वाले भक्तों की मान्यता है कि बालाजी महाराज हर संकट हरने वाले और मनोकामनाएँ पूरी करने वाले हैं। आइए, कुछ प्रसिद्ध चमत्कारिक कथाओं को जानें:
1. अंधे व्यक्ति की आँखें वापस पाने की कथा
एक बार एक अंधे भक्त ने सालासर धाम में 40 दिनों तक निराहार रहकर बालाजी की आराधना की। कहते हैं कि 41वें दिन बालाजी ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा:
"जाओ, तुम्हारी आँखों की रोशनी लौट आएगी।"
अगले दिन जब वह व्यक्ति जागा, तो उसकी आँखें ठीक हो चुकी थीं! यह चमत्कार आज भी भक्तों में विख्यात है।
2. बैलगाड़ी का रेत के टीले पर रुकना
मूर्ति को असोटा से सालासर लाते समय बैलगाड़ी स्वयं रेत के टीले पर रुक गई। जब लोगों ने इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की, तो बैलों ने हिलने से इनकार कर दिया। मोहनदास जी ने इसे बालाजी की इच्छा मानकर वहीं मूर्ति स्थापित कर दी। आज यही स्थान "सालासर धाम" कहलाता है।
3. अखंड ज्योति का रहस्य
मंदिर में मोहनदास जी द्वारा प्रज्वलित अग्नि (धूंणा) 1755 से लगातार जल रही है। कहते हैं कि एक बार मंदिर के पुजारी ने इस अग्नि को बुझाने का प्रयास किया, लेकिन आग स्वयं प्रज्वलित हो गई। तब से इसे "बालाजी की अखंड ज्योति" माना जाता है।
4. नारियल बाँधने से मनोकामना पूर्ण होना
एक महिला ने अपने बेटे की बीमारी के लिए मनोती का नारियल बाँधा। कुछ दिनों बाद उसका बेटा ठीक हो गया। जब वह नारियल चढ़ाने आई, तो देखा कि नारियल पर बालाजी की मूर्ति की छवि उभर आई थी! यह नारियल आज भी मंदिर में रखा हुआ है।
5. मुस्लिम कारीगर का चमत्कार
मंदिर निर्माण के समय मुस्लिम कारीगर नूर मोहम्मद बीमार पड़ गया। उसने बालाजी से प्रार्थना की:
"हे प्रभु, अगर मैं ठीक हो गया, तो मंदिर का गुंबद सोने से मढ़वा दूँगा।"
वह ठीक हो गया और अपना वादा पूरा किया। आज भी मंदिर का स्वर्णिम गुंबद इस चमत्कार की याद दिलाता है।
6. भक्त की जान बचाने वाला निशान
एक भक्त पर डाकुओं ने हमला किया, लेकिन उसने बालाजी का नाम लिया। डाकुओं ने देखा कि भक्त के सिर पर बालाजी का निशान (तिलक) चमक रहा है। वे डरकर भाग गए। यह निशान आज भी उस भक्त के वंशजों के पास है।
7. बाढ़ में मंदिर का बचाव
एक बार सालासर में भयंकर बाढ़ आई। पानी मंदिर तक पहुँचने ही वाला था कि अचानक बाढ़ का रुख बदल गया। लोग मानते हैं कि बालाजी ने अपने गदा के प्रहार से मंदिर की रक्षा की।
8. विदेशी भक्त का अनुभव
एक अमेरिकन पर्यटक को मंदिर में अज्ञात बीमारी से ग्रसित होने पर बालाजी की छवि दिखाई दी। उसने वहीं प्रार्थना की और ठीक हो गया। आज वह हर साल सालासर आता है।
निष्कर्ष: आस्था ही चमत्कार है
ये कथाएँ साबित करती हैं कि श्रद्धा और विश्वास में अद्भुत शक्ति होती है। सालासर बालाजी मंदिर में आज भी भक्तों को अनगिनत चमत्कार होते हैं, जो इसे "जीवंत देवस्थान" बनाते हैं। जैसा कि कहा जाता है:
"संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरै सालासर बलबीरा।"
श्री सालासर बालाजी मंदिर: विस्तृत यात्रा योजना
चाहे आप आध्यात्मिक यात्रा पर हों या राजस्थान की संस्कृति एक्सप्लोर करना चाहते हों, सालासर बालाजी मंदिर की ट्रिप प्लान करने के लिए यह गाइड आपकी मदद करेगी। यहाँ हर स्टेप का डिटेल दिया गया है:
1. यात्रा से पहले की तैयारी
समय चयन:
बेस्ट टाइम: अक्टूबर से मार्च (मौसम सुहावना)।
मेलों का समय: चैत्र पूर्णिमा (मार्च-अप्रैल) और आश्विन पूर्णिमा (सितंबर-अक्टूबर)।
पैकिंग:
कपड़े: हल्के सूती कपड़े (गर्मियों में), स्वेटर (सर्दियों में)।
जरूरी सामान: मेडिकल किट, पानी की बोतल, टॉर्च, आईडी प्रूफ।
2. कैसे पहुँचें?
2.1 सड़क मार्ग
दिल्ली से:
दूरी: 318 किमी (लगभग 6-7 घंटे)।
रूट: NH 48 → NH 52 (दिल्ली-गुड़गाँव-रेवाड़ी-सालासर)।
जयपुर से:
दूरी: 160 किमी (लगभग 3 घंटे)।
रूट: NH 52 (जयपुर-सीकर-सालासर)।
2.2 ट्रेन
नजदीकी स्टेशन:
सुजानगढ़ (24 किमी): दिल्ली-बीकानेर रूट पर।
सीकर (57 किमी): जयपुर से नियमित ट्रेनें।
टैक्सी/बस: स्टेशन से सालासर तक ₹500-800 (शेयरिंग)।
2.3 हवाई मार्ग
नजदीकी एयरपोर्ट: जयपुर (170 किमी)।
फ्लाइट्स: दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर से डायरेक्ट।
कैब किराया: जयपुर से सालासर ₹3000-4000 (वन-वे)।
3. सालासर में ठहरने की व्यवस्था
3.1 धर्मशालाएँ (बजट फ्रेंडली)
श्री बालाजी धर्मशाला: मंदिर के पास, ₹200-500/रात।
सुविधाएँ: AC/नॉन-AC कमरे, कॉमन बाथरूम।
श्री अंजनी माता धर्मशाला: साफ-सुथरे कमरे, ₹300/रात।
3.2 होटल्स (मिड-रेंज)
होटल बालाजी पैलेस: AC कमरे ₹1500-2500, वाई-फाई, पार्किंग।
होटल श्री राम: मंदिर से 1 किमी, ₹1200/रात।
3.3 लग्जरी स्टे (अगर बजट परमिट करे)
रिज़ॉर्ट नियर सीकर: सालासर से 50 किमी, ₹5000+/रात।
4. मंदिर दर्शन और आसपास घूमने की योजना
दिन 1: मंदिर दर्शन और प्रार्थना
सुबह 5:00 बजे: मंगला आरती में शामिल हों।
7:00-10:00 बजे: मुख्य मंदिर में दर्शन, मनोती का नारियल बाँधें।
दोपहर: मोहनदास जी के धूंणे पर पवित्र राख लें।
शाम 7:00 बजे: संध्या आरती और भजन।
दिन 2: आसपास के दर्शनीय स्थल
अंजनी माता मंदिर (2 किमी): ऑटो से ₹50-100।
शयनन माता मंदिर (15 किमी): कैब ₹500-700 (वन-वे)।
सेठानी का जोहरा (10 किमी): राजपूत वीरता की कहानियाँ।
दिन 3: खाटू श्याम जी (80 किमी)
समय: सुबह 6:00 बजे प्रस्थान, 2 घंटे की ड्राइव।
वापसी: शाम 5:00 बजे तक सालासर लौटें।
5. भोजन और प्रसाद
मंदिर लंगर: निःशुल्क शुद्ध शाकाहारी भोजन (दोपहर 12:00-3:00 बजे)।
लोकल फूड:
दाल-बाटी-चूरमा: होटल श्री राम में मशहूर।
राजस्थानी कढ़ी: स्ट्रीट स्टॉल्स पर मिलती है।
प्रसाद: बूंदी के लड्डू (मंदिर की दुकानों से खरीदें)।
6. जरूरी टिप्स
कैमरा: मंदिर के अंदर फोटोग्राफी मना है।
कपड़े: सादे और सुविधाजनक कपड़े पहनें, महिलाएं साड़ी/सूट पहन सकती हैं।
भीड़: मेलों के दिनों में 2-3 घंटे पहले पहुँचें।
दान: मंदिर में अनाज, कपड़े या नकद दान कर सकते हैं।
7. आपातकालीन संपर्क
नजदीकी हॉस्पिटल: सालासर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (1 किमी)।
पुलिस स्टेशन: सुजानगढ़ (24 किमी)।
8. बजट प्लानिंग (2 दिन/2 व्यक्ति)
यात्रा: ₹4000 (दिल्ली से बस/ट्रेन)।
ठहरना: ₹1000/रात (धर्मशाला)।
भोजन: ₹500/दिन।
कुल अनुमान: ₹6000-7000।
श्री सालासर बालाजी मंदिर से जुड़े प्रेरणादायक हिंदी कोट्स
"संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरै सालासर बलबीरा।"
(सभी संकट दूर होंगे, जो सालासर के बलशाली हनुमान का स्मरण करेगा।)
"मनोती का नारियल बाँधो, बालाजी की कृपा पाओ।
हर इच्छा पूरी होगी, संकट सब मिट जाएँगे।"
"जय जय सालासर धाम, जहाँ बैठे हैं दाढ़ी-मूँछ वाले बलराम।"
"हनुमान वही जग प्रसिद्ध, जहाँ भक्त की लाज राखी।
सालासर में बसें बालाजी, सबकी मनोकामना साखी।"
"राम दूत बजरंगी, संकट मोचन नाम।
सालासर धाम में करो दर्शन, पाओ अनंत विश्राम।"
"जो श्रद्धा से आएगा, बालाजी उसका कल्याण करेंगे।
मन के अंधेरों को मिटाकर, ज्ञान का दीपक जलाएँगे।"
"सालासर की पावन धरा, यहाँ आकर मिलती है हर पीरा।
बालाजी के चरणों में शीश झुकाओ, हो जाएगी सब विपदा ख़त्म।"
"भक्ति का अद्भुत संगम है यह धाम,
सालासर बालाजी हैं सबके काम।"
"मोहनदास जी की तपस्या से, प्रकट हुए बालाजी महाराज।
चमत्कारों की नगरी है, ये पावन सालासर समाज।"
"बजरंग बली की कृपा हो, हर मुसीबत टल जाए।
सालासर धाम का दर्शन कर, जीवन में सुख छा जाए।"
"हनुमान चालीसा की ज्योत जलाओ,
सालासर बालाजी का नाम लेकर घर समृद्ध बनाओ।"
"दाढ़ी-मूँछ वाले बलवीर, संकट हरने वाले महाबीर।
सालासर धाम के स्वामी, भक्तों के हैं सच्चे हमीर।"
निष्कर्ष: सालासर बालाजी – आस्था, इतिहास और अमृतमयी शांति का संगम
श्री सालासर बालाजी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भक्ति, चमत्कार और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है। यहाँ की दाढ़ी-मूँछ वाली हनुमान मूर्ति भक्तों के लिए असीम विश्वास का केंद्र है, जो साबित करती है कि भगवान हर युग में भक्तों की रक्षा के लिए नए रूपों में प्रकट होते हैं।
इस मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – मोहनदास जी का तप, मूर्ति का स्वप्नादेश, और हिंदू-मुस्लिम एकता से निर्मित वास्तुकला – हमें सिखाती है कि आस्था और सद्भाव किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं। मनोती के नारियल से लेकर अखंड ज्योति तक, हर परंपरा यहाँ के चमत्कारों की गवाह है।
यहाँ आकर भक्त न केवल मनोकामनाएँ पूरी करते हैं, बल्कि आंतरिक शांति का अनुभव भी करते हैं। चाहे वह चैत्र पूर्णिमा का मेला हो या अंजनी माता के दर्शन, हर पल एक अलौकिक ऊर्जा से भरा होता है।
अंत में, सालासर धाम की यात्रा एक ट्रिप नहीं, बल्कि आत्मा की खोज है। जैसा कि कहा जाता है:
"जय बजरंगबली, संकट मोचन नाम।
सालासर धाम में बसें, सबके प्राणाधार श्याम।"
श्री सालासर बालाजी महाराज की कृपा सभी पर बनी रहे!
Salasar Balaji Temple
April 20 2025