स्वामी निश्चलानंद सरस्वती

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के बारे मेंं

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती

(नीलांबर)

जन्म: बिहार के मधुबनी जिले के हरिपुर बक्शी टोल नामक गाँव
पिता: पंडित श्री लालवंशी झा
माता: श्रीमती गीता देवी
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : हिन्दू
शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव कलुआही और लोहा में और बाद में दिल्ली में हुई

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती भारत के पुरी , ओडिशा के पूर्वाम्नाय श्री गोवर्धन पीठ के वर्तमान 145 वें जगद्गुरु शंकराचार्य हैं। 

देश-विदेश में उनके अनुयायी उनका प्राकट्य दिवस उमंग व उत्साहपूर्वक मनाते हैं | पूज्य पिताजी पं | श्री लालवंशी झा क्षेत्रीय कुलभूषण दरभंगा नरेश के राज पंडित थे | आपकी माताजी का नाम गीता देवी था | आपके बचपन का नाम नीलाम्बर था |

आपकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार और दिल्ली में सम्पन्न हुई है | दसवीं तक आप बिहार में विज्ञान के विद्यार्थी रहे | दो वर्षों तक तिब्बिया कॉलेज दिल्ली में अपने अग्रज डॉ | श्री शुक्रदेव झा जी की छत्रछाया में शिक्षा ग्रहण की पढ़ाई के साथ-साथ कुश्ती, कबड्डी और तैरने में अभिरूचि के अलावा आप फुटबाल के भी अच्छे खिलाड़ी थे | बिहार और दिल्ली में आप छात्रसंघ विद्यार्थी परिषद के उपाध्यक्ष और महामंत्री भी रहे |

अपने अग्रज पं | श्रीदेव झा जी के प्रेरणा से अपने दिल्ली में सर्व वेद शाखा सम्मेलन के अवसर पर पूज्यपाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज एवं श्री ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम के पीठाधीश्वर पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री कृष्णबोधाश्रम जी महाराज का दर्शन प्राप्त किया | इस अवसर पर उन्होंने पूज्य करपात्री जी महाराज को हृदय से अपना गुरूदेव मान लिया | तिब्बिया कालेज में जब आपकी सन्यास की भावना अत्यंत तीव्र होने लगी तब वे बिना किसी को बताये काशी के लिए पैदल ही चल पड़े |

इसके उपरांत आपने काशी, वृन्दावन, नैमिषारण्य, बदरिकाआश्रम, ऋषिकेश, हरिद्वार, पुरी, श्रृंगेरी आदि प्रमुख धर्म स्थानों में रहकर वेद-वेदांग आदि का गहन अध्ययन किया |

नैमिषाराण्य के पू्ज्य स्वामी श्री नारदानन्द सरस्वती जी ने आपका नाम ‘ध्रुवचैतन्य’ रखा | आपने 7 नवम्बर 1966 को दिल्ली में देश के अनेक वरिष्ठ संत-महात्माओं एवं गौभक्तों के साथ गौरक्षा आन्दोलन में भाग लिया | इस पर उन्हें 9 नवम्बर को बन्दी बनाकर 52 दिनों तक तिहाड़ जेल में रखा गया |

बैशाख कृष्ण एकादशी गुरूवार विक्रम संवत् 2031 तद्नुसार दिनांक 18 अप्रैल 1974 को हरिद्वार में आपका लगभग 31 वर्ष की आयु में पूज्यपाद धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के करकमलों से सन्यास सम्पन्न हुआ

और उन्होंने आपका नाम ‘निश्चलानन्द सरस्वती’ रखा | श्री गोवर्धन मठ पुरी के तत्कालीन 144 वें शंकराचार्य पूज्यपाद जगद्गुरू स्वामी निरन्जनदेव तीर्थ जी महाराज ने स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती को अपना उपयुक्त उत्तराधिकारी मानकर माघ शुक्ल षष्ठी रविवार वि | संवत् 2048 तद्नुसार दिनांक 9 फरवरी 1992 को उन्हें अपने करकमलों से गोवर्धनमठ पुरी के 145 वें शंकराचार्य पद पर पदासीन किया |

शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने के तुरन्त बाद आपने ‘अन्यों के हित का ध्यान रखते हुए हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श की रक्षा, देश की सुरक्षा और अखण्डता’ के उद्देश्य से प्रामाणिक और समस्त आचार्यों को एक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए राष्ट रक्षा के इस अभियान को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान कराने की दिशा में अपना प्रयास आरंभ कर दिए | राष्टरक्षा की अपनी राष्ट व्यापी योजना को मूर्तरूप दिलाने हेतु उन्होंने देश के प्रबुद्ध नागरिकों के लिए ‘पीठ परिषद’ और उसके अन्तर्गत युवकों की ‘आदित्य वाहिनी’ तथा मातृशक्ति के लिए आनन्द वाहिनी के नाम से एक संगठनात्मक परियोजना तैयार की |

इसमें बालकों के लिए ‘बाल आदित्य वाहिनी’ एवं बालिकाओं हेतु बाल आनंद वाहिनी की व्यवस्था भी की गई | पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज ने चैत्र शुक्ल नवमी शनिवार विक्रम संवत् 2049 तद्नुसार दिनाकं 4 अप्रैल सन् 1992 को रामनवमी के शुभ दिन पर श्री गोवर्धनमठपुरी में ‘पीठ परिषद’ और उसके अंतर्गत ‘आदित्य वाहिनी’ का शुभारंभ करवाया | कलियुग में संघ के शक्ति सन्निहित हैं | धर्म, ईश्वर और राष्ट से जोड़ने का कार्य संघ द्वारा सम्पन्न हो, यह आवश्यक है |

पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी द्वारा स्थापित पीठ परिषद और उसके अंतर्गत आदित्य वाहिनी एवं आनन्द वाहिनी का मुख्य उद्देश्य ‘अन्यों के हित का ध्यान रखते हुए हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श की रक्षा, देश की सुरक्षा और अखण्डता’ है | पूज्यपाद महाराज श्री का अभियान मानव मात्र को सुबुद्ध, सत्य सहिष्णु और स्वावलम्बी बनाना है | उनका प्रयास है कि पार्टी और पन्थ में विभक्त राष्ट को सार्वभौम सनातन सिद्धान्तों के प्रति दार्शनिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक धरातल पर आस्थान्वित कराने का मार्ग प्रशस्त हो |

उनका ध्येय है कि सत्तालोलुपता और अदूरदर्शिता के वशीभूत राजनेताओं की चपेट से देश को मुक्त कराया जाये | बड़े भाग्यशाली हैं वे लोग जिन्हें विश्व के सर्वोच्च ज्ञानी के रूप में प्रतिष्ठित इन महात्मा द्वारा चलाये जा रहे अभियान में सहभागी बनने और जिम्मेदारी निभाने का सुअवसर मिला हुआ है | परमपूज्य गुरूदेव के चरणों में कोटिश: नमन तथा चन्द्रमौलीश्वर भगवान से दीर्घायुष्य एवं आसेम्यता के लिए प्रार्थना है |

जीवन परिचय :--

पुरी पीठ के वर्तमान शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज का जन्म 30 जून 1943 को बिहार के मधुबनी जिले के हरिपुर बक्शी टोल नामक गाँव में हुआ था।

उनके पिता पंडित श्री लालवंशी झा और माता श्रीमती गीता देवी थीं। उनके पिता मिथिला परंपरा में संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान थे और मिथिला (दरभंगा साम्राज्य) के तत्कालीन राजा के दरबारी विद्वान थे।

स्वामी का पूर्व नाम नीलांबर था, जो उनके बड़े भाई पंडित श्रीदेव झा ने रखा था। नीलांबर बचपन में अद्भुत चरित्र के धनी थे और बहुत अध्ययनशील और बुद्धिमान भी थे।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव कलुआही और लोहा में और बाद में दिल्ली में हुई। 17 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और अपनी जीवन यात्रा की खोज में निकल पड़े।

वेदों की सभी शाखाओं से संबंधित एक संगोष्ठी में धर्म सम्राट करपात्री जी महाराज और ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी श्री कृष्णबोधाश्रम जी महाराज उपस्थित थे।

इस अवसर पर उन्होंने मन ही मन पूज्य करपात्री जी महाराज को अपना गुरु स्वीकार कर लिया था। नैमिषारण्य के स्वामी श्री नारदानंद सरस्वती ने उन्हें ध्रुवचैतन्य नाम दिया था।

उन्होंने काशी, वृंदावन, नैमिषारण्य, बद्रिकाश्रम, ऋषिकेश, हरिद्वार, पुरी, श्रृंगेरी आदि विभिन्न स्थानों पर वेदों और वेदों से संबंधित विभिन्न शाखाओं का बहुत गंभीरता से अध्ययन किया।

ध्रुवचैतन्य ने धर्म सम्राट करपात्री जी महाराज के गोरक्षा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए हिंदुओं की आस्था का प्रतीक मानी जाने वाली गायों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया।

गौरक्षा की वकालत करने के कारण उन्हें 9 नवंबर 1966 से 52 दिनों तक तिहाड़ जेल में रखा गया था।

उन्होंने वैशाख कृष्ण एकादशी, संवत 2031, 18 अप्रैल 1974 को हरिद्वार में स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज के करकमलों से संन्यास ग्रहण किया।

स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज ने उन्हें नये नाम निश्चलानंद सरस्वती के तहत संन्यास दीक्षा दी। 1976 से 1981 तक उन्होंने अपने गुरुदेव से प्रस्थानत्रयी, पंचदशी, वेदान्त परिभाष, न्याय मीमांसा, तंत्र और अद्वैत सिद्धि का गहन अध्ययन किया।

1982 से 1987 तक उन्होंने पुरी पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी श्री निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज से विशेष जोर देते हुए खंडनाखंड खाद्य और यजुर्वेद का अध्ययन किया।

उन्होंने उनके साथ पांच चातुर्मास बिताए।

स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी की प्रतिभा, प्रतिभा, सनातन धर्म के प्रति समर्पण और अपने गुरुओं में अत्यधिक आस्था से प्रभावित होकर शंकराचार्य स्वामी श्री निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज ने उन्हें पुरी स्थित गोवर्धन पीठ के 145वें शंकराचार्य के रूप में अभिषिक्त किया।

श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठ के वर्तमान 145 वें श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज भारत के एक ऐसे सन्त हैं जिनसे आधुनिक युग में विश्व के सर्वोच्च वैधानिक संगठनों संयुक्त राष्टसंघ तथा विश्व बैंक तक ने मार्गदर्शन प्राप्त किया है |

संयुक्त राष्टसंघ ने दिनांक 28 से 31 अगस्त 2000 को न्यूयार्क में आयोजित विश्वशांति शिखर सम्मेलन तथा विश्व बैंक ने वर्ल्ड फेथ्स डेवलपमेन्ट डाइलॉग- 2000 के वाशिंगटन सम्मेलन के अवसर पर उनसे लिखित मार्गदर्शन प्राप्त किया था |

श्री गोवर्धन मठ से संबंधित स्वस्ति प्रकाशन संस्थान द्वारा इसे क्रमश: विश्व शांति का सनातन सिद्धांत तथा सुखमय जीवन सनातन सिद्धांत शीर्षक से सन् 2000 में पुस्तक रूप में प्रकाशित किया है |

वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटर व मोबाईल फोन से लेकर अंतरिक्ष तक के क्षेत्र में किये गये आधुनिक आविष्कारों में वैदिक गणितीय सिद्धांतों का उपयोग किया है जो पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य श्री स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा रचित स्वस्तिक गणित नामक पुस्तक में दिये गये हैं ।

 गणित के ही क्षेत्र में पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य जी महाराज की अंक पदीयम् तथा गणित दर्शन नाम से दो और पुस्तकों का लोकार्पण हुआ है, जो निश्चित ही विश्व मंच पर वैज्ञानिकों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में नए आविष्कारों के लिए नए परिष्कृत मानदंडों की स्थापना करेंगे |


स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज की जीवनी:--

उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई बिहार के कलुआही और लोहा गांव में की |

इसके बाद उन्होंने दिल्ली के तिब्बिया कॉलेज में दो साल तक पढ़ाई की |

बिहार और दिल्ली में छात्रसंघ विद्यार्थी परिषद के उपाध्यक्ष और महामंत्री भी रहे |
18 अप्रैल, 1974 को हरिद्वार में धर्म सम्राट स्वामी करपात्री महाराज के शरण में जाकर उन्होंने संन्यास लिया |
इसके बाद उनका नाम निश्चलानंद सरस्वती रखा गया |
9 फ़रवरी, 1992 को गोवर्धन मठ पुरी के 145वें शंकराचार्य के रूप में नियुक्त हुए |
उन्होंने कहा है कि हिंदू सिर्फ़ धर्म नहीं बल्कि जीवन शैली है |
उन्होंने कहा है कि सहिष्णुता, अहिंसा, और समर्पण हिंदू धर्म की शिक्षाएं हैं। 

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती कौन हैं?

श्री निश्चलानंद सरस्वती का जन्म नीलांबर झा के रूप में वर्ष 1943 में मधुबनी के एक मैथिल ब्राह्मण परिवार में दरभंगा के महाराजा के राजा-पंडित (शाही पुजारी) पंडित लालवंशी झा और श्रीमती गीता देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। उनके पिता दरभंगा साम्राज्य के एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान और दरबारी विद्वान थे।

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कौन-कौन सी बुक्स लिखी हैं?

-स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने मैथामैटिक्स जैसे जटिल विषय पर 10 बुक्स लिखी हैं। -इसमें प्रमुख रूप से अंक पद्यम, सूत्र गणित, स्वास्तिक गणित, गणित दर्शन, शून्येक सिद्धि, द्वैंक पद्धति आदि शामिल है। -इन सभी बुक्स पर ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज यूनीवर्सिटी में शोध हो रहा है।