जन्म: | 841 तेहरान, ईरान |
मृत्यु: | 925 तेहरान, ईरान |
राष्ट्रीयता: | ईरानी |
शिक्षा: | चिकित्सक |
किताबें | रचनाएँ : | अलहावी |
अलराजी
प्रख्यात वैज्ञानिक व चिकित्सक अलराजी का जन्म अनुमानों के अनुसार, सन् 841 में आधुनिक ईरान कहे जानेवाले देश में तेहरान के पास हुआ था। अन्य मध्यकालीन विद्वानों की भाँति अलराजी ने भी विभिन्न विषयों का अध्ययन किया था,
जिसमें दर्शन, संगीत, काव्य, तर्कशास्त्र आदि शामिल थे। अपनी उम्र के चौथे दशक में उन्होंने चिकित्सा-विज्ञान में रुचि लेना प्रारंभ किया और बताया जाता है कि इस रुचि की उत्पत्ति के पीछे बगदाद में उनकी किसी से भेंट थी। शीघ्र ही उन्होंने चिकित्सा-विज्ञान में भी महारत हासिल कर ली और एक बड़े प्रमुख अस्पताल के प्रमुख बन गए। वे एक कुशल लेखक भी थे। उन्होंने संगीत पर एक विश्वकोश तैयार किया, जो अरब जगत् में अद्भुत है।
उन्होंने लगभग 200 पुस्तकें लिखीं, जिनमें से आधी चिकित्सा विज्ञान पर थीं। इनमें से प्रमुख है ‘अलहावी’, जो 25 खंडों में है। इसका मूल अरबी संस्करण अब उपलब्ध नहीं है, पर इसके लैटिन संस्करण से उनके ज्ञान व कार्य का आभास होता है। उनकी एक अन्य रचना, जिसमें प्राचीन यूनानी विद्वानों की सामग्री ज्यादा ली गई है, में चेचक व खसरे—इन दोनों में अंतर तथा गॉल ब्लैडर व गुर्दे में पथरी आदि पर विस्तृत चर्चा की गई है। अपने समय के अन्य चिकित्सकों की भाँति अलराजी की भी कीमियागीरी में गहरी रुचि थी। उन्होंने इस पर भी विस्तार से अपनी पच्चीस पुस्तकों में लिखा, जिनमें से ज्यादातर आज उपलब्ध नहीं हैं। इनमें उन्होंने रासायनिक परिवर्तन संपन्न करने की विधियाँ बताईं। गेबर की भाँति वे भी यह मानते थे कि धातुएँ दो तत्त्वों गंधक व पारे के संगम से बनती हैं। वे इसमें एक आदर्श लवण मिलाने का प्रयास करते रहे। वे अनेक प्रकार के रसायनों से परिचित थे और उनका प्रयोग चिकित्सा-शास्त्र में किया करते थे। उन्होंने उस समय तक ज्ञात पदार्थों का वर्गीकरण करने का प्रयास किया और उन्हें तीन वर्गों—प्राणियों, वनस्पतियों व खनिजों में बाँटा।
सन् 925 में अलराजी का तेहरान के निकट रे में ही निधन हो गया।