नागार्जुन

नागार्जुन

नागार्जुन

(नागार्जुन (रसायनशास्त्री))

जन्म: 931 AD दैहक सोमनाथ, गुजरात
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : बौद्ध
शिक्षा: नालंदा विश्वविद्यालय बिहार
किताबें | रचनाएँ : कक्षपुत्र तंत्र, आरोग्य मंजरी, योगसार, योगाष्टक, रस रत्नाकर

नागार्जुन

प्राचीन भारतीय रसायन-शास्त्री नागार्जुन के जन्म-स्थान व जन्म-तिथि के संबंध में अनेक मत हैं। पर इतना अवश्य है कि उनका जन्म वर्तमान गुजरात राज्य में सोमनाथ के निकट देहकदुर्ग के एक धनवान् ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह भी कहा जाता है कि देर से संतान होने के कारण उनके पिता ने 1,000 ब्राह्मणों को भोजन कराया था, तब उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई थी और बालक का नाम ‘नागार्जुन’ रखा गया। जन्म के समय ज्योतिषियों ने बालक को अल्पायु बताया और मृत्यु से बचने के लिए शीघ्र ही नालंदा जाने की सलाह दी। नागार्जुन नालंदा गए। वहाँ पर उन्होंने अध्ययन किया और फिर अध्यापन भी। कालांतर में वे वहाँ के कुलपति भी बने। जब देश में अकाल पड़ा तो नागार्जुन ने समुद्र के बीच एक द्वीप में जाकर सस्ती धातुओं से सोना बनाने की विधि (कीमियागीरी) पर अनुसंधान किया। वे सफल भी रहे और वापस आकर अकाल का संकट दूर किया। इसका उल्लेख एक तिब्बती ग्रंथ में मिलता है। नागार्जुन का योगदान अद्वितीय है। उन्होंने ‘रस रत्नाकर’ व ‘रसेंद्र मंगल’ नामक ग्रंथों की रचना की। वे बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने ‘सुश्रुत संहिता’ का न केवल संपादन किया वरन् उसमें एक नया अध्याय ‘उत्तर तंत्र’ भी जोड़ा।

उनके अन्य ग्रंथों के नाम हैं—

कक्षपुत्र तंत्र’, ‘आरोग्य मंजरी’, ‘योगसार’। ‘योगाष्टक’, ‘रस रत्नाकर’ में उन्होंने विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का विस्तार से वर्णन किया है। ये हैं—विभिन्न धातुओं का मिश्रण तैयार करना, पारा का शोधन, अन्य धातुओं का शोधन, नकली सोना बनाना, महारसों का शोधन, रसायन की विभिन्न विधियों तथा उनके उपकरणों का निर्माण व प्रयोग। नागार्जुन ने दीर्घकाल तक नीरोग रहने के लिए औषधियों के निर्माण हेतु गहन तपस्या की थी। इस क्रम में उन्होंने पारे का भस्म तैयार किया था तथा उसमें निश्चित मात्रा में अन्य रासायनिक पदार्थ मिलाए। नागार्जुन को उनके जीवन काल में ही काफी मान-सम्मान मिला। उनके जीवन-चरित्र का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ।

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