जीवक

जीवक

जीवक

जन्म: राजगृह, मगध बिहार
मृत्यु: राजगृह, मगध बिहार
पिता: अभयराजकुमार
माता: सालवती
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : बौद्ध
शिक्षा: तक्षशिला विश्वविद्यालय रावलपिंडी ज़िला, पंजाब पाकिस्तान

जीवक

महात्मा बुद्ध के चिकित्सक जीवक के जन्म व मृत्यु की तिथि तो ज्ञात नहीं है, पर उनका काल ईसा पूर्व 600 से 500 माना जाता है। उनकी माता सलावती राजगृह, जो आधुनिक पटना है, की प्रमुख गणिका (वेश्या) थीं। पुत्र-जन्म के पश्चात् लोक-लाज से बचने के लिए उन्होंने शिशु को कूड़ेदान में फेंक दिया था। जीवित शिशु को वहाँ देखकर लोगों ने राजकुमार अभय को सूचित किया, जिन्होंने शिशु को मँगाकर उसका लालन-पालन किया। उसका नाम ‘जीवक’ रखा गया। पर ज्यों ही बालक जीवक को जन्म-कथा का ज्ञान हुआ, वह बिना सूचना दिए महल छोड़कर चल दिया। जीवक तक्षशिला पहुँचा, जो उस समय विश्वविद्यालय था। वहाँ पर जीवक ने सात वर्षों तक आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण की। शिक्षा पूरी होने पर गुरु ने परीक्षा के रूप में जीवक से कहा कि तक्षशिला के आस-पास वे वनस्पतियाँ ढूँढ़कर लाओ, जिनमें कोई औषधीय गुण न हो। जीवक ने तक्षशिला से एक योजन की दूरी तक सभी ओर उपलब्ध वनस्पतियों का गहन अध्ययन किया और गुरु के पास लौट आए। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि ऐसी कोई वनस्पति नहीं मिली, जिसमें औषधीय गुण न हों। अतः उन्हें क्षमा कर दिया जाए। गुरु ने जीवक की शिक्षा पूर्ण घोषित की और विदा किया। जीवक साकेत (आधुनिक अयोध्या) पहुँचे। उनके पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी; पर तभी उन्हें एक धनी व्यापारी मिला, जिसकी पत्नी सात वर्षों से अस्वस्थ थी और उसपर विभिन्न उपचारों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था। जीवक ने उसका उपचार करके शीघ्र स्वस्थ कर दिया। व्यापारी ने एक बहुत बड़ी राशि, यात्रा के लिए रथ, दास-दासी देकर जीवक को विदा किया। अब जीवक राजगृह पहुँचे और अपने प्राणदाता राजकुमार अभय से मिले। उन्होंने अब तक प्राप्त सारा धन राजकुमार को सौंप दिया और अभय के पिता राजा बिंबसार का उपचार प्रारंभ किया, जो भगंदर रोग से पीडि़त थे। जीवक ने उनके लिए एक लेप तैयार किया, जिसके प्रयोग से एक बार में ही राजा स्वस्थ हो गए। राजा ने जीवक को उपहार-स्वरूप तमाम रत्नाभूषण दिए और उन्हें अपना राजवैद्य तथा महात्मा बुद्ध का चिकित्सक भी नियुक्त कर दिया। जीवक औषधि के लिए हर प्रकार के पदार्थ का उपयोग कर लेते थे। एक बार उज्जैन के राजा ने उपचार हेतु उन्हें बुलाया। राजा को घी से घृणा थी। जीवक ने औषधि में घी का प्रयोग किया। औषधि देकर वे वापस चल पड़े। बाद में राजा को पता चला कि घी का उपयोग किया गया है तो उसने सैनिक भेजकर जीवक को बंदी बनाने का आदेश दिया। सैनिकों ने आकर जीवक को घेर लिया। जीवक उस समय बहेड़ा खा रहे थे। उन्होंने प्रेमपूर्वक सैनिकों को भी बहेड़ा खाने के लिए दिया। इसके साथ ही सैनिकों को दस्त होने लगे और भयंकर पेट-दर्द प्रारंभ हो गया। उन्होंने आचार्य जीवक से प्राण-रक्षा के लिए याचना की। जीवक ने कहा कि वे उन्हें स्वस्थ कर देंगे; पर सैनिक वापस लौट जाएँ और उन्हें राजगृह जाने दें। आश्वासन मिलने पर जीवक ने उन्हें औषधि दी और चल दिए। उधर उज्जैन-नरेश जीवक की औषधि से स्वस्थ हो चुके थे। सैनिकों से विवरण सुनकर उन्हें भयंकर पश्चात्ताप हुआ और उन्होंने बहुमूल्य वस्तुएँ जीवक को उपहारस्वरूप भेजीं। पर जीवक अपने पास कुछ नहीं रखते थे और उन्होंने वे वस्तुएँ महात्मा बुद्ध को भेंट कर दीं। वे औषधीय चिकित्सा के साथ शल्य चिकित्सा में भी निपुण थे। उन्होंने महात्मा बुद्ध के उदर रोग का भी उपचार किया। जीवक गरीबों का निःशुल्क उपचार करते थे और अमीरों से प्राप्त धन बाँटते रहते थे। राजा बिंबसार के बाद वे अजातशत्रु के राजवैद्य बने और उनके प्रभाव में अजातशत्रु ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया। जीवक बाल रोग चिकित्सा में भी निपुण थे। उनका उल्लेख बौद्ध ग्रंथों में प्रचुरता से मिलता है।

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