पुनर्वसु

पुनर्वसु

पुनर्वसु

(पुनर्वसु आत्रेय)

राष्ट्रीयता: भारतीय
किताबें | रचनाएँ : आत्रेय संहिता

पुनर्वसु आत्रेय

महान् आयुर्वेदाचार्य पुनर्वसु आत्रेय के बारे में माना जाता है कि वे अत्रि मुनि के पुत्र तथा भरद्वाज मुनि के शिष्य थे। आत्रेय एक महान् विद्वान् तथा योग्य शिक्षक थे। उनके योग्य शिष्यों ने उनके ज्ञान का प्रसार देश-विदेश में किया। उन्होंने चिकित्सा-शास्त्र पर अनेक ग्रंथ लिखे, जिनमें से उनके ग्रंथ ‘आत्रेय संहिता’ में 46,501 श्लोक हैं। यह चिकित्सा-विज्ञान का एक वृहद् ज्ञानकोश है। इसके आरंभ में ही आत्रेय ने बतलाया है कि विषय इतना वृहद् है कि एक जन्म में इसका संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेना असंभव है। आत्रेय ने समाज को रोगों का ज्ञान कराया, साथ ही नाड़ी व श्वास गति पर प्रकाश डाला। उन्होंने रोगों को साध्य व असाध्य वर्ग में बाँटा। साथ ही यह परामर्श भी दिया कि किन रोगों के उपचार की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। उन्होंने हवा, मिट्टी, मीठे, कसैले, तीखे स्वाद के शरीर पर प्रभाव की भी व्याख्या की। उन्होंने पानी के गुणों का भी वर्णन किया। गरम व ठंडे पानी के प्रभावों में अंतर समझाया। उन्होंने विभिन्न अनाजों, फलों, सब्जियों व मदिराओं के गुण-अवगुणों की विवेचना की। पशु-पक्षियों में मांस के पौष्टिक तत्त्वों को समझाया और सेवन विधि का ज्ञान कराया तथा वात-पित्त-कफ की वैज्ञानिक विवेचना की। आत्रेय ने आयुर्वेद को वैज्ञानिक स्वरूप दिया। अंधविश्वासों का खंडन करते हुए उन्होंने रोगों का कारण असावधानी बताया तथा मुक्ति के लिए उपचार सुझाए।

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