इरैटोस्थनिज़

इरैटोस्थनिज़

इरैटोस्थनिज़

जन्म: ईसा पूर्व 273 सीरीन, उत्तरी अफ्रीका
मृत्यु: ईसा पूर्व 194 अलेक्जेंड्रिया
शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा एथेंस

प्राचीन वैज्ञानिक, गणितज्ञ व खगोलविद् एराटोस्थेनीज का जन्म उत्तरी अफ्रीका के सीरीन नामक स्थान पर ईसा पूर्व 273 में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा एथेंस में हुई और फिर वे महान् शिक्षा केंद्र अलेक्जेंड्रिया आए तथा वहाँ के विशाल संग्रहालय व पुस्तकालय के प्रमुख पुस्तकालयाध्यक्ष बने। एराटोस्थेनीज के जीवन के अन्य पहलुओं की अल्प जानकारियाँ ही हैं। पर इतना अवश्य ज्ञात है कि वे भूगोल में गहन रुचि रखते थे। उन्होंने विभिन्न स्थानों के बीच दूरियाँ मापने का विशेष प्रयास किया था और इस क्रम में उन्होंने अपनी जन्मभूमि सीरीन व कर्मभूमि अलेक्जेंड्रिया को दो संदर्भ बिंदुओं के रूप में चुना था। 

उनके अनुसंधान कार्यों के निम्न परिणाम थे— 

1. पृथ्वी की परिधि 29,000 मील है, जबकि आधुनिक भूगोल-शास्त्रियों के अनुसार यह 25,000 मील से कुछ कम है। 

2. पृथ्वी का स्वरूप कुछ हद तक अंडाकार है और धु्रवों पर यह कुछ चपटी है। यह ज्ञान उन्हें गरमियों व सर्दियों में सूर्य की रोशनी का अध्ययन करके प्राप्त हुआ। 

3. एक वर्ष में वास्तव में 365.25 दिवस होते हैं।

 यह वास्तविकता के काफी करीब है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि उस काल में एराटोस्थेनीज का कार्य उत्कृष्ट था और जो भी ज्ञान व सुविधाएँ उपलब्ध थीं, उनका उपयोग करते हुए उन्होंने लगातार परिश्रम किया। उनकी एक अन्य उपलब्धि यह थी कि 

उन्होंने नील नदी के मार्ग का कच्चा नक्शा बनाया था। उन्होंने पृथ्वी के अध्ययन का भी एक तरीका विकसित किया था, जो आज भी प्रचलित है। उन्होंने पृथ्वी को समानांतर रेखाओं द्वारा छोटे-छोटे खंडों में बाँटा था और फिर उसके आधार पर अध्ययन किया था। यह व्यवस्था आज अक्षांश व देशांतर रेखाओं के रूप में प्रयोग होती है। मुख्य पुस्तकालयाध्यक्ष का दायित्व सँभालते हुए उन्होंने अपनी वृहद् रचना तैयार की, जिसका शीर्षक था ‘ज्योग्राफी’। इसमें उन्होंने समानांतर रेखाओं द्वारा पृथ्वी को बाँटकर फिर घनाकार खंडों को संख्या के रूप में व्यक्त करके उनका अध्ययन करने की विधि का वर्णन किया। सीरीन व अलेक्जेंड्रिया में सूर्य की रोशनी के झुकाव के अध्ययन के आधार पर उन्होंने पृथ्वी के अपने अक्ष पर झुकाव को दरशा दिया। उन्होंने ‘लीप ईयर’ की अवधारणा भी समझाई और उपलब्ध भौगोलिक ज्ञान के आधार पर पृथ्वी का कच्चा नक्शा भी तैयार कर दिया। उनके नक्शे में पृथ्वी को क्षेत्रों में बाँटा गया था और जिन इलाकों में आबादी थी, उसे भी अंकित किया गया था। इतने असाधारण ज्ञानी को भी उस काल में लोग ‘बीटा’ (एक ग्रीक अक्षर) कहकर बुलाते थे, जिसका अर्थ था कि वे किसी भी विषय में श्रेष्ठतम नहीं थे और हरफनमौला ही थे। अपने अंतिम दिनों में वे नेत्रहीन हो गए थे। उन्होंने काफी कष्ट सहे और निराशा के माहौल में निराहार रहकर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। ईसा पूर्व 194 में अलेक्जेंड्रिया में उनका निधन हो गया।

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