फ्रांसिस बेकन

फ्रांसिस बेकन

फ्रांसिस बेकन

जन्म: 22 जनवरी 1561 स्ट्रैंड, लंडन, इंग्लैंड
मृत्यु: 9 अप्रैल 1626 (उम्र 65) हाईगेट, मिडिलसेक्स, इंग्लैंड
राष्ट्रीयता: अंग्रेज
शिक्षा: कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय

फ्रांसिस बेकन

 सोलहवीं शताब्दी के लिए वैज्ञानिक तरीका विकसित करनेवाले फ्रांसिस बेकन का जन्म 22 जनवरी, 1561 को लंदन में हुआ था। उनके पिता सर निकोलस बेकन एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। प्रारंभिक शिक्षा के पश्चात् फ्रांसिस बेकन का प्रवेश कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में हुआ। इसके पश्चात् उन्होंने लंदन स्थित ‘ग्रे इन’ में पढ़ाई की। फ्रांसिस बेकन के कॅरियर का प्रारंभ फ्रांस में इंग्लैंड के राजदूत के साथी के रूप में हुआ था। सन् 1584 में वे छोटी उम्र में ही ब्रिटिश सांसद बन गए; पर उन्हें कोई उपयोगी कार्य या मंत्रालय नहीं मिला। पर जब जेम्स प्रथम ने इंग्लैंड की सत्ता सँभाली तो उनका सितारा चमका।

सन् 1603 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि मिली। राजा की परिषद् के सदस्य वे सन् 1604 में बने। सन् 1607 में सॉलीसिटर जनरल तथा 1613 में एटॉर्नी जनरल बनने के पश्चात् उन्हें ग्रेट सील का ‘कीपर’ नियुक्त किया गया। इस पद पर उनके पिता भी रह चुके थे।

सन् 1618 में वे ‘लॉर्ड हाई चांसलर’ बने; पर उनके अच्छे दिन भी ज्यादा लंबे नहीं चले और 1621 में उनपर भ्रष्टाचार का मुकदमा चला और उन्हें जेल में डाल दिया गया। हालाँकि वे जल्दी छूट गए, पर उनका सार्वजनिक जीवन समाप्त हो गया। पर फ्रांसिस बेकन एक अद्भुत विद्वान् थे और उन्होंने ज्ञान की सभी शाखाओं का अध्ययन किया था।

उन्होंने इनका अपने तरीके से वर्गीकरण किया था, जैसे—स्मृति के आधार पर, तर्क के आधार पर, कल्पना के आधार पर। वे विभिन्न विषयों पर लिखते रहे, पर उनका लेखन बिखरा रहा और कई बार वह अपूर्ण भी रहा। पर उनका एक योगदान अद्भुत था और वह था सत्य तक पहुँचने के तरीके का विकास। इसे ‘बेकोनियन तरीका’ कहा जाता है और वैज्ञानिक इसका अनुसरण करते हैं। उन्होंने बताया कि बहुत सारे तथ्य, जो आमतौर पर छिपे होते हैं, हमारी इंद्रियों तक आते हैं। ये स्मृति में आकर बस जाते हैं।

ये आगे के अनुसंधान का कारण बन जाते हैं। अनुसंधानकर्ता अपने-अपने तरीकों से इन तथ्यों तक बार-बार पहुँचता है। इस प्रक्रिया में कुछ अवयव बार-बार नहीं उभरते हैं और वे अलग हो जाते हैं। धीरे-धीरे हमारे मन में प्रक्रिया के संबंध में परिकल्पना उभरने लगती है, जिसका सत्यापन किया जाता है। प्रारंभ में उपर्युक्त तरीके को दार्शनिकों ने अधिक स्वीकारा। बाद में वैज्ञानिकों ने भी आजमाया। आज यह तरीका आम लगता है, पर पश्चिम में उस समय यह नवीनतम था।

9 अप्रैल, 1626 को इस महान् विद्वान् व वैज्ञानिक का लंदन के पास हाइगेट में निधन हो गया।

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