(Fibrous capsule of Glisson)
जन्म: | सन् 1597 डोरसैट के पास रैंफीशायर, इंग्लैंड |
मृत्यु: | 16 अक्तूबर, 1677 ,लंदन |
राष्ट्रीयता: | British |
शिक्षा: | चिकित्सक |
फ्रांसिस ग्लिसन
प्रख्यात चिकित्सा-शास्त्री, जिन्होंने लीवर एवं रिकेट आदि पर महत्त्वपूर्ण शोध किया, फ्रांसिस ग्लिसन का जन्म सन् 1597 में इंग्लैंड में डोरसैट के पास रैंफीशायर में हुआ था। ग्लिसन ने कैंब्रिज से कला विषय में सन् 1621 में स्नातक की उपाधि और 1624 में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी। इसके बाद वे वहीं पर फैलो व डीन नियुक्त हुए थे। वे ग्रीक भाषा पर व्याख्यान देते थे। इसके पश्चात् उन्होंने चिकित्सा-शास्त्र का अध्ययन किया और सन् 1634 में ‘डॉक्टर ऑफ मेडिसिन’ की उपाधि प्राप्त की। अगले ही वर्ष वे रॉयल कॉलेज ऑफ फिजीशियन के फैलो निर्वाचित हुए। उन्होंने शरीर-रचनाशास्त्र पढ़ाया भी।
सन् 1636 में कैंब्रिज में प्रोफेसर नियुक्त हुए। ग्लिसन के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव व विचित्रताएँ आईं। गृहयुद्ध में उनकी नौकरी चली गई। शांति होने पर वे लंदन में पै्रक्टिस करने लगे। वे रॉयल सोसाइटी के संस्थापक सदस्यों में से थे। बाद में वे कैंब्रिज कभी नहीं गए, पर उनकी वहाँ की प्रोफेसरशिप चलती रही। उस समय रिकेट की बीमारी चर्चा का विषय थी। ग्लिसन भी उसी में जुट गए। उन्होंने इस रोग पर गहन अनुसंधान किया और उसे कलमबद्ध भी किया। यह पुस्तक उनके नाम से सन् 1650 में प्रकाशित हुई। यह पुस्तक उन्नीसवीं शताब्दी तक इस विषय में श्रेष्ठ पुस्तक मानी जाती रही। उन्होंने लिवर पर भी गहन अनुसंधान किया तथा सामान्य लिवर व रोग-युक्त लिवर की विशेषताओं का वर्णन किया। उन्होंने लिवर में प्रवेश करनेवाली और उससे निकलनेवाली रक्तवाहिकाओं का वर्णन किया। उन्होंने खारिश पर भी अनुसंधान किया और बतलाया कि मांसपेशियों के रेशे इससे प्रभावित हो जाते हैं। इस संबंध में उनकी पुस्तक सन् 1677 में प्रकाशित हुईर्। 16 अक्तूबर, 1677 को लंदन में उनका निधन हो गया।