जन्म: | 1394-1399, जर्मनी |
मृत्यु: | 3 फरवरी,1468 (जर्मनी) |
राष्ट्रीयता: | जर्मन |
छपाई की कला पहले-पहल चीन में विकसित हुई थी, पर पश्चिमी जगत् इससे अनभिज्ञ था। इस कारण वहाँ सामान्य ज्ञान की पुस्तकों की प्रतियों की कल्पना तो दूर की बात थी, प्रमुख धर्मग्रंथ ‘बाइबिल’ की प्रतियाँ भी दुर्लभ थीं।
छपाई की कला को नए सिरे से विकसित करनेवाले जोहान गुटेनबर्ग के जीवन का काफी भाग अनुमानों पर ही आधारित है। उनका जन्म जर्मनी के मेंज शहर में सन् 1394 से 1399 के मध्य हुआ था। उनके पिता पेशे से सुनार थे और मेंज के आर्कबिशप द्वारा चलाई जानेवाली टकसाल में कार्य किया करते थे। उनका काम धातु पर छपाई व नक्काशी करना था।
अवश्य ही बालक, जिसका नाम माता-पिता ने पहले ‘गेन्स फ्लैश’ रखा था, पर बाद में वह गुटेनबर्ग कहलाने लगा, ने यह कला सीखी होगी और इससे उसके भावी आविष्कार का मार्ग प्रशस्त हुआ होगा।
पर उस काल में भयंकर उथल-पुथल भी थी। कुशल प्रशिक्षित कारीगर की गिल्ड सक्रिय थी और कारोबार पर उसका पक्का नियंत्रण था। मेंज की गिल्ड ने किन्हीं कारणों से जोहान के पिता को मेंज छोड़ने पर मजबूर कर दिया। वे भागकर स्ट्रॉसबर्ग चले गए। यह क्षेत्र आजकल फ्रांस में पड़ता है।
यहीं पर रहते हुए गुटेनबर्ग ने एक साझीदार के साथ पहले धातु के मोल्ड तैयार करने का कारोबार किया और उसके बाद छपाई की कला भी विकसित कर ली। उन्होंने सारा कार्य बड़े गोपनीय तरीके से किया और वह अपने अति सुंदर परिणामों से सभी को चौंकाना चाहते थे।
सन् 1443 में जोहान गुटेनबर्ग वापस मेंज आ गए और वहाँ पर अपनी कार्यशाला शुरू की, जिसमें उन्होंने छपाई से संबंधित प्रयोग एक के बाद एक प्रारंभ किए। उनका उद्देश्य ‘बाइबिल’ की सुंदर प्रतियाँ तैयार करना था, जिसे 42 पंक्तियों की बाइबिल भी कहा जाता था। पर हर आविष्कारक की भाँति गुटेनबर्ग को भी धन की आवश्यकता हुई।
सन् 1449 में जोहानफस्ट नामक वकील पैसे लगाने के लिए आगे आया। पहली किश्त तो उन्होंने बिना किसी अनुबंध के दे दी, पर दूसरी किश्त देने के बाद अनुबंध के लिए जोर डाला और मुनाफे में हिस्सा माँगने लगा। ऐसा न करने पर उन्होंने पूरा पैसा एक साथ लौटाने के लिए दबाव डाला। इधर जोहान गुटेनबर्ग ने अपनी छपाई की कला विकसित कर ली थी और इसमें हर अक्षर के लिए एक विशेष मोल्ड होता था। इन मोल्ड को जोड़कर शब्द और फिर वाक्य बनाए जाते थे। पूरे पृष्ठ की छपाई के बाद उन्हें अलग-अलग करके नया पृष्ठ तैयार किया जा सकता है।
वकील फस्ट की धमकियों की चिंता न करते हुए गुटेनबर्ग ने पैसा नहीं लौटाया और ‘बाइबिल’ की प्रतियाँ भी छापता रहा। अंततः फस्ट ने अदालत में मुकदमा कर दिया। अदालत ने गुटेनबर्ग को मय ब्याज के पैसा लौटाने का आदेश दिया। ऐसा न कर पाने पर उसने गुटेनबर्ग की कार्यशाला, सारा साज-सामान और बाइबिल की प्रतियाँ फस्ट के हवाले कर दीं। अब फस्ट ने छपाई प्रारंभ कर दी।
उसने गुटेनबर्ग के फोरमैन, जो पूरी तकनीक से अवगत था, अपने यहाँ काम पर रख लिया। साथ में अपनी बेटी की शादी भी उससे कर दी। दुखी गुटेनबर्ग ने नए सिरे से अपना कार्य प्रारंभ किया। उसने लैटिन डिक्शनरी की छपाई की। सन् 1460 में जब वह डिक्शनरी लोगों के हाथों में आई तो सराहना का कारण बनी। पर गुटेनबर्ग के जीवन में कभी शांति नहीं रही।
एक महिला ने सन् 1436 में अदालत में मुकदमा दायर किया कि गुटेनबर्ग ने उससे विवाह का वायदा किया था, पर मुकर गया। अदालत ने क्या फैसला सुनाया, यह तो ज्ञात नहीं है, पर वह आजीवन कुँआरा ही रहा। स्ट्रॉसबर्ग में जो व्यक्ति उसका साझीदार था, उसका देहांत सन् 1438 में हुआ। उसके भाइयों ने गुटेनबर्ग की छपाई की कला में हिस्से का दावा कर दिया।
उनका कहना था कि यह स्ट्रॉसबर्ग में ही विकसित हो गई थी। पर कोई किताब छप पाई थी, इसका प्रमाण नहीं है। दूसरी ओर, अनेक लोग गुटेनबर्ग को छपाई का आविष्कारक मानने से ही इनकार करते रहे। गुटेनबर्ग ने जो बाइबिलें छापीं, उन्हें ‘गुटेनबर्ग बाइबिल’ कहा जाता था। बाद में फस्ट और उनके फोरमैन ने जो छापीं वह भी गुटेनबर्ग बाइबिल ही कही जाती थी, क्योंकि तकनीक उन्हीं की थी। उन लोगों का कहना था कि उन्हें ‘फस्ट बाइबिल’ कहा जाना चाहिए।
उस समय पेटेंट कानून नहीं था। शायद अन्य लोगों की भाँति गुटेनबर्ग ने भी अपनी कला को गोपनीय रखा। यह भी आरोप लगा कि उसने कुछ छात्रों से पैसा ले लिया था, पर यह कला सिखाई नहीं। अक्तूबर 1462 में मेंज में पुनः उथल-पुथल हुई और गुटेनबर्ग को भागना पड़ा। बाद में आर्कबिशप ने पुनः बुलवा लिया और सरकारी पद दिया, जिसे गुटेन बर्ग निभाता रहा।
पर छीछालेदर से तंग आकर उसने छपाई की ओर देखना भी बंद कर दिया था। अपने पद का दायित्व वहन करते हुए 3 फरवरी, 1468 को उसका निधन हो गया। आज भी उनकी छपी बाइबिलें सुरक्षित है, पर निजी जीवन के पहलू अनछपे रह गए।