जन्म: | 25 जनवरी 1627 लिसमोर कांसेल मुंस्टर प्रदेश, आयरलैंड |
मृत्यु: | 31 दिसंबर 1691 (64 वर्ष) लंदन |
पिता: | कॉर्क के अर्ल |
राष्ट्रीयता: | आयरिश |
शिक्षा: | ईटन कॉलेज |
किताबें | रचनाएँ : | न्यू एक्सपेरिमेंट्स, फ़िज़िको मिकैनिकल, टचिंग द स्प्रिंग ऑव एयर ऐंड इट्स एफेक्ट्स |
रॉबर्ट बॉयल(आधुनिक रसायनशास्त्र का प्रवर्तक) का जन्म 26 जनवरी, 1627 को आयरलैंड के मुंस्टर नामक स्थान पर एक धनी-मानी परिवार में हुआ था। बालक रॉबर्ट बचपन से ही प्रतिभावान् व जिज्ञासु था।
अपने युग के महान वैज्ञानिकों में से एक, लंदन की प्रसिद्ध रॉयल सोसायटी का संस्थापक तथा कॉर्क के अर्ल की 14वीं संतान था।
उसने अपनी अंग्रेजी भाषा के अलावा लैटिन, ग्रीक, हिब्रू, फ्रेंच आदि भाषाएँ सीखीं।
8 वर्ष की उम्र में उसका प्रवेश इटन कॉलेज में हो गया, जो कॉलेज शिक्षा में प्रवेश की तैयारी कराता था। यहाँ पर 3 वर्ष तक अध्ययन करने के बाद रॉबर्ट बॉयल अपने निजी शिक्षक के साथ यूरोप के भ्रमण पर निकल पड़ा। इटली पहुँचने पर उसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक गैलीलियो के कृतित्व का ज्ञान हुआ और उसके मन में विज्ञान का अध्ययन करने की ललक जागी। इंग्लैंड वापस आने पर रॉबर्ट बॉयल की भेंट ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कार्य कर रहे वैज्ञानिकों से हुई। जब इन वैज्ञानिकों ने अपना संगठन बनाया तो ब्रिटिश राजशाही ने उसे ‘रॉबर्ट सोसाइटी’ का नाम दिया। ये सभी वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा अपने सिद्धांतों का सत्यापन करने में विश्वास करते थे। रॉबर्ट बॉयल के पिता उनके लिए बड़ी जायदाद छोड़ गए थे और इस कारण न तो उन्हें उपकरण-निर्माण के लिए धन की चिंता थी और न ही सहायक रखने के लिए। उन्होंने एक प्रतिभावान् सहायक रॉबर्ट हुक नियुक्त किया और उसकी सहायता से शून्य उत्पन्न करनेवाला पंप तैयार किया।
बॉयल ने J आकार की 10 फीट लंबी काँच की एक ट्यूब तैयार करवाई। उसका एक सिरा बंद था। अब उन्होंने इसमें खुले सिरे से कुछ पारा डाला। प्रारंभ में दोनों भुजाओं में पारा बराबर था। इसका अर्थ था कि बंद भाग में हवा का दबाव खुले भाग के बराबर था अर्थात् वायुमंडल के दबाव के बराबर था। अब बॉयल ने खुले सिरे से और पारा डाला तो दोनों भुजाओं में पारे का स्तर असमान हो गया। उसका अर्थ था—बंद भाग में हवा संपीडि़त हो रही थी और वह पारे के स्तर के ऊपर उठने का प्रतिरोध कर रही थी। बॉयल ने बंद सिरे में स्थित हवा के दबाव की गणना अतिरिक्त लंबाई के पारे के दबाव तथा वायुमंडलीय दबाव को जोड़कर की। इस प्रकार उन्होंने पाया कि जब दबाव दुगुना हो जाता है तो गैस का आयतन आधा हो जाता है। उन्होंने दबाव बदलकर लगभग 100 प्रयोग किए और पाया कि गैस का आयतन उसके दबाव के विपरीत अनुपात में होता है। बाद में जेम्स चार्ल्स नामक वैज्ञानिक ने इसमें एक संशोधन किया कि ऐसा तब होगा जब तापमान निश्चित रहेगा। यह नियम ‘बॉयल का गैस का नियम’ कहलाता है। रॉबर्ट बॉयल ने विज्ञान की अनेक शाखाओं में प्रयोग किए थे। ध्वनि की गति मापने, रंगों का कारण जानने, रवे की संरचना जानने, स्थिर विद्युत् का अध्ययन जैसे कार्य उन्होंने कर दिखाए। उन्होंने हाथ से चलनेवाला पंप भी तैयार किया और यह भी सिद्ध किया कि प्राणी वायु-विहीन परिवेश में नहीं रह सकता है। इस प्रकार वे ऑक्सीजन की खोज के करीब पहुँच चुके थे। इसी क्रम में उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया कि शून्य में गंधक नहीं जलेगा। रॉबर्ट बॉयल ने रासायनिक तत्त्व की परिभाषा भी दी, जिसके अनुसार वह अभी तक ज्ञात विधियों द्वारा विखंडित नहीं हो सकेगा। उन्होंने स्वयं तो अपने अनुसंधानों के परिणाम दिए ही, अन्य आविष्कारों के लिए अनुसंधान हेतु मार्ग खोल दिए। अनेक मामलों में वे प्रथम थे; जैसे—उन्होंने पहले-पहल घोषित किया कि ताप अणुओं की गति के कारण उत्पन्न होता है। उन्होंने पहले-पहल अध्ययन हेतु गैस एकत्रित की। नमूनों के संरक्षण के लिए उन्होंने अल्कोहल के प्रयोग की सलाह दी। अम्ल और भस्म की विशेषताएँ बतलाईं। पहाड़ की ऊँचाई मापने के लिए बैरोमीटर का प्रयोग किया। साथ ही सीलबंद थर्मामीटर का उपयोग किया। वे आजीवन धार्मिक बने रहे। आयु बढ़ने के साथ उनकी धार्मिकता बढ़ी। उन्होंने ‘बाइबिल’ की विभिन्न भाषाओं में छपाई और प्रचार-प्रसार के लिए भी योगदान किया और न्यूटन की ऐतिहासिक पुस्तक ‘पिंरसिपिया’ के प्रकाशन में भी आर्थिक सहायता की।
64 वर्ष की आयु में 31 दिसंबर, 1691 को लंदन में उनका निधन हो गया।