शालिहोत्र

शालिहोत्र

शालिहोत्र

जन्म: श्रावस्ती, उत्तर प्रदेश
पिता: हयगोष
राष्ट्रीयता: भारतीय
किताबें | रचनाएँ : शालिहोत्रसंहिता, हय आयुर्वेद, अश्व लक्षण-शास्त्र, अश्व प्रशंसा

शालिहोत्र (2350 ईसापूर्व) हयगोष नामक ऋषि के पुत्र थे। वे पशुचिकित्सा (veterinary sciences) के जनक माने जाते हैं। उन्होंंने 'शालिहोत्रसंहिता' नामक ग्रन्थ की रचना की। वे श्रावस्ती के निवासी थे।

उनके बारे में अनेक मान्यताएँ भी हैं, जैसे—शालिहोत्र आचार्य सुश्रुत के गुरु थे, शालिहोत्र व अग्निवेश एक ही गुरु के शिष्य थे, शालिहोत्र कंधार के समीप सालपुर के निवासी थे आदि। उनका कार्यकाल ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी माना जाता है। उस समय घोड़े मनुष्य के प्रिय हमसफर हो चुके थे और आचार्य शालिहोत्र ने अपने अनुसंधान का यही विषय चुना था।

उन्होंने तीन प्रमुख ग्रंथों की रचना की थी।

ये थे—1. हय आयुर्वेद, 2. अश्व लक्षण-शास्त्र, 3. अश्व प्रशंसा। ‘हय आयुर्वेद’ एक विशाल ग्रंथ है,

जिसके आठ भाग हैं तथा उसमें कुल 12,000 श्लोक हैं। प्रथम अध्याय में घोड़ों की विभिन्न जातियों के गुणों, उनके लक्षणों व रूप-रंग का वर्णन है।

द्वितीय अध्याय में घोड़ों के विभिन्न रोगों के नाम, उनकी पहचान, साँप काटने या जहरीला बाण लगने पर उनकी स्थिति और उपचार-पद्धति का वर्णन है। आगे के अध्यायों में घोड़ों को वश में करने की विधियों, विभिन्न कार्यों में उन्हें अभ्यस्त बनाने की विधियों, घोड़ों पर लादे जानेवाले भारों की मात्रा, रथ में जोतने की विधि, उनको विभिन्न रोगों में दी जानेवाली औषधियों का वर्णन है। उपर्युक्त ग्रंथ आज भी प्रामाणिक हैं और यह माना जाता है कि शालिहोत्र ने इसके लिए लंबा अध्ययन व अनुसंधान किया होगा। कालांतर में शालिहोत्र के ग्रंथों का अनुवाद फारसी, अरबी, तिब्बती तथा अंग्रेजी भाषाओं में हुआ। कुशल अश्व चिकित्सकों को ‘शालिहोत्र’ की उपाधि प्रदान की जाती है।

शालिहोत्र की पाण्डुलिपि के पन्ने का चित्र है ।

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