जन्म: | 14 दिसंबर, 1546 (डेनमार्क) |
मृत्यु: | 24 अक्टूबर, 1601 (चेक गणराज्य) |
पश्चिम में दूरबीन के आविष्कार से पूर्व खगोल-शास्त्रियों में श्रेष्ठतम माने जानेवाले टायको ब्राहे का जन्म तत्कालीन डेनमार्क के नुडस्ट्रुप स्केन नामक स्थान पर 14 दिसंबर, 1546 को हुआ था।
वे अपने पिता ऑटो ब्राहे के ज्येष्ठ पुत्र थे। ऑटो ब्राहे डेनमार्क के एक कुलीन व्यक्ति थे। जब टायको मात्र एक वर्ष के थे, तभी उनके निस्संतान चाचा जॉर्गन ब्राहे जबरन टायके को अपने साथ ले गए। बाद में इस बात को ऑटो ब्राहे ने स्वीकार कर लिया। टायको के प्रारंभिक बचपन के बारे में अधिक जानकारियाँ नहीं हैं, पर उन्हें अवश्य ही अच्छी शिक्षा मिली होगी। 13 वर्ष की उम्र में जॉर्गन ने उसे आगे कानून आदि की पढ़ाई के लिए कोपेनहेगन भेजा।
सन् 1562 से 1565 तक टायको ने लिपजिग में कानून की पढ़ाई की। खगोल-शास्त्र का अध्ययन उन्होंने स्वयं ही कर लिया और सन् 1570 से 1572 तक ऑग्सबर्ग में रसायन-शास्त्र का अध्ययन किया। इसी बीच उन्होंने अपने मामा के हेरीज्वाड में अपने महल में एक प्रयोगशाला लगाने के लिए राजी कर लिया। इसी दौरान एक खगोलीय घटना नोवा (तारे का विस्फोट) घटी। अपनी प्रयोगशाला से टायको ने इस घटना को 11 नवंबर, 1572 को देखा और इसका वर्णन उन्होंने अपनी पहली रचना में किया था। विस्फोट के बाद की तारे की स्थिति का वर्णन भी उन्होंने अपनी पहली रचना में किया।
वे बाद में भी इस विषय पर अनुसंधान करते रहे और उनकी मुख्य रचना में भी इस घटना का बेहतर वर्णन है। टायको ब्राहे ने अपनी पसंद की एक किसान की लड़की से विवाह कर लिया। इस कारण उनके अपने परिवार के साथ संबंध तनावग्रस्त हो गए थे। पर तभी एक राजकीय आदेश के अंतर्गत उन्हें कोपेनहेगन में व्याख्यानों की एक शृंखला देनी पड़ी। इस कारण सन् 1575 तक वे पूरे जर्मनी के खगोल-शास्त्रियों के मध्य लोकप्रिय हो गए थे।
उन्होंने जर्मनी की यात्रा भी की थी। वे स्विट्जरलैंड में बसने का मन बना रहे थे, पर तभी डेनमार्क के राजा ने उन्हें जीवन भर के लिए पेंशन तथा एक वीन नामक द्वीप स्वीकृत कर दिया। इस द्वीप पर टायको ब्राहे ने अपनी वेधशाला स्थापित की। पर दुर्भाग्य यह रहा कि वह वेधशाला टायको की इच्छाओं के अनुरूप नहीं थी और इसी बीच डेनमार्क के अगले राजा ने पेंशन व द्वीप पर अधिकार दोनों रद्द कर दिए। यही नहीं, टायको ब्राहे को अगले 21 वर्षों तक वहीं रहने के लिए बाध्य किया गया। पर टायको ने अपना समय खगोलीय अध्ययन में ही बिताया।
टायको के पास हर प्रकार के खगोलीय अध्ययन हेतु उपकरण थे। उन्होंने स्वयं अनेक का निर्माण कराया था और हर प्रकार की निर्माण सामग्री जैसे—लकड़ी, पीतल, लौह आदि का उनमें उपयोग हुआ था। उनमें से था बड़ा म्यूरॉल क्वाडरेंट, जिसे वे अपना आविष्कार बताते थे, हालाँकि अन्य लोग इस बात पर चुनौती देते रहे। टायको ब्राहे ने जो निरीक्षण किए, उनकी शुद्धता के निम्न आधार थे—
1. अधिक परिणामों का औसत।
2. अपने उपकरणों में ट्रांसवर्स स्केल डायवर्जन का प्रावधान।
उपर्युक्त कारणों से मापन की त्रुटियों व वायुमंडल के अपवर्तन के कारण अशुद्धियों का प्रभाव काफी हद तक समाप्त हो जाता था। उन्होंने अपने उपकरणों की डिजाइन इस प्रकार तैयार की थी कि अशुद्धि आधा मिनट चाप से अधिक नहीं होती थी। वे इस पर भी संतुष्ट नहीं थे और सुधार हेतु विभिन्न उपाय करते रहते थे। टायको काम करने के परंपरागत तरीकों पर निर्भर नहीं रहते थे।
उन्होंने चंद्रमा की गति का लगातार व लंबा अवलोकन किया। इस कारण उन्हें इसकी परिक्रमा अवधि में असमानता देखने की मिली। उन्होंने धूमकेतुओं का भी गहन अध्ययन किया। एक प्रकार से कैद टायको ब्राहे की उपलब्धियों की शृंखला खासी लंबी है।
उन्होंने अपने समय की खगोलीय सारणियों में त्रुटियाँ निकालीं और उनमें से अनेक का परिशोधन भी किया। उन्होंने इस काल में सौर मंडल का जो मॉडल प्रस्तुत किया था, उसमें पृथ्वी को ब्रह्मांड का केंद्र दिखलाया था। सन् 1584 में प्रस्तुत इस मॉडल में सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता दिखाया गया था और अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते दिखाए गए थे।
टायको ब्राहे कोपरनिकस के सूर्य-केंद्रित ब्रह्मांड सिद्धांत को नहीं मानते थे और अपने मॉडल, जिसे टायकोनिक प्लानेटरी सिस्टम कहा करते थे, को ही सत्य मानते थे। टायको ब्राहे अत्यंत उग्र स्वभाव के थे और इस कारण सन् 1566 में युवावस्था में ही उनका अपने एक सहपाठी से विवाद हो गया था और झगड़े में उनकी नाक टूट गई थी। इस कारण उन्हें कृत्रिम नाक लगानी पड़ी थी।
लंबे समय तक एक प्रकार से बंदी रहने के पश्चात् टायको ब्राहे सन् 1597 में डेनमार्क से निकल गए। कुछ अवधि तक हैम्बर्ग स्थित महल में रहकर आकाश निहारण के पश्चात् सन् 1599 में वे प्राग पहुँचे, जहाँ उन्हें रहने तथा काम करने के लिए एक बड़ा महल व अच्छी पेंशन राशि मिलने लगी। सन् 1600 में जोहांस केपलर उनके साथ काम करने के लिए सहायक के रूप में आए। प्रारंभ में युवा केपलर को टायको के स्वभाव के कारण कार्य करने में काफी परेशानी हुई, पर उन्होंने धैर्य बनाए रखा। दुर्भाग्यवश दो वर्ष बाद ही टायको ब्राहे का निधन हो गया था।
उनकी मृत्यु का कारण उनके द्वारा पारे का सेवन माना गया, जो विषैला होता है। टायको के आँकड़ों का खजाना केपलर के पास आ गया। हालाँकि टायको का मॉडल अशुद्ध था, पर सम्मान देने के लिए इसे टॉलेमी व कोपरनिकस के मध्य का मॉडल माना गया। केपलर ने टायको ब्र्राहे की पांडुलिपियों का संपादन किया। उसके पहले खंड में 777 तारों को दरशाया गया था। दूरबीन के काल से पूर्व का यह सबसे बड़ा कार्य था।
मरने के बाद भी टायको ब्राहे का विवादों से नाता नहीं टूटा; पर आज भी खगोल-शास्त्रियों में उनका नाम आदर सहित लिया जाता है।