
प्रेमानंद जी महाराज
(प्रवेश कुमार पांडे, अनिरुद्ध कुमार पांडे)
जन्म: | 1972 अखरी गांव, सरसौल ब्लॉक, कानपुर (उत्तरप्रदेश) |
पिता: | शंभु पांडे |
माता: | रमादेवी |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
धर्म : | हिन्दू |
शिक्षा: | 8वीं क्लास कानपुर के अखरी गांव के स्थानीय स्कूल में |
प्रेमानंद महाराज का जन्म :-
कानपुर देहात के सरसौल थाना क्षेत्र के अखरी गांव में प्रेमानंद महाराज का जन्म हुआ था. उनका बचपन में नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय था. उनके पिता शंभू पांडे और मां रामा देवी पांडे थीं. खेती-किसानी के परिवार में वो जन्मे थे. उनके एक भाई भी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे. प्रेमानंद महाराज का झुकाव बेहद कम उम्र में ही धर्म आध्यात्म की ओर हो गया. वो बड़े भाई के साथ श्री मद्भागवत का पाठ करने लगे. हनुमान चालीसा का वो असंख्या बार पाठ कर लेते थे
उत्तरी भारत के एक छोटे से गाँव में जन्मे श्री प्रेमानंद जी महाराज (shri premanand ji maharaj) ने कम उम्र से ही आध्यात्मिक झुकाव के लक्षण प्रदर्शित किए। एक बच्चे के रूप में, वह घंटों ध्यान और प्रार्थना में डूबे रहते थे और अक्सर खुद को भक्ति भजनों की धुनों में खोए रहते थे। उनके शुद्ध हृदय और ईश्वर में अटूट विश्वास ने कई आध्यात्मिक गुरुओं का ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने उनकी असाधारण भक्ति को पहचाना और उनकी आध्यात्मिक यात्रा में उनका मार्गदर्शन किया। श्री प्रेमानंद जी महाराज का मानना था कि भक्ति का मार्ग किसी विशिष्ट धार्मिक परंपरा तक सीमित नहीं है। उन्होंने सिखाया कि ईश्वर के प्रति प्रेम सार्वभौमिक है और इसे जीवन के सभी क्षेत्रों के व्यक्तियों द्वारा अनुभव किया जा सकता है। उनकी शिक्षाओं ने परमात्मा के साथ गहरा संबंध विकसित करने में ईमानदारी, समर्पण और निस्वार्थ प्रेम के महत्व पर जोर दिया। वह अक्सर अपने अनुयायियों को अपने अहंकार को त्यागने और खुले और ग्रहणशील हृदय से भक्ति का मार्ग अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार दीक्षा :-
13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार दीक्षा ले ली. तब उनका नाम आर्यन ब्रह्मचारी पड़ा. यह बात भी कम लोगों को ही मालूम है कि उनके दादा ने भी संन्यास ग्रहण कर लिया था. प्रेमानंद जी महाराज ने राधा राधवल्लभी संप्रदाय में संन्यास संग दीक्षा ली. वहीं उनका नाम अनिरुद्ध पांडे की जगह आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी पड़ा. मथुरा वृंदावन आगमन से पहले वो ज्ञानमार्गी थे. हालांकि अन्य साधु संतों के कहने पर उन्होंने श्रीकृष्ण लीला देखी और फिर वो भक्ति मार्गी परंपरा के बड़े उपासक बन गए.
श्री प्रेमानंद जी महाराज (shri premanand ji maharaj) का भगवान कृष्ण की शाश्वत पत्नी राधा जी के प्रति प्रेम, उनकी साधना का केंद्र बिंदु है। उनका दृढ़ विश्वास है कि राधा जी दिव्य प्रेम के सर्वोच्च रूप का प्रतीक थीं और उन्हें भक्ति के प्रतीक के रूप में देखते थे। राधा (Radha) जी के प्रति उनका प्रेम केवल एक बौद्धिक अवधारणा नहीं बल्कि एक गहरा व्यक्तिगत और अनुभवात्मक रिश्ता था। वह अक्सर राधा जी को बिना शर्त प्रेम की प्रतिमूर्ति और प्रेरणा का शाश्वत स्रोत बताते थे।
अपने पूरे जीवन में, श्री प्रेमानंद जी महाराज ने खुद को राधा जी की सेवा और दिव्य प्रेम का संदेश फैलाने के लिए समर्पित कर दिया। वह प्रतिदिन प्रार्थना और ध्यान में घंटों बिताते थे, खुद को राधा जी की दिव्य उपस्थिति में डुबो देते थे।
प्रेमानन्द जी महाराज बिना वस्त्रों के भूखे-प्यासे गंगा घाटों पर घूमते रहे। हरिद्वार और वाराणसी के बीच कड़कड़ाती सर्दी में भी उन्होंने गंगा में तीन बार स्नान करने की अपनी दिनचर्या नहीं छोड़ी। प्रेमानन्द जी महाराज निराहार व्रत करते थे और उनका शरीर ठण्ड से कांप रहा था। लेकिन वह पूरी तरह से परमात्मा के ध्यान में लीन रहते। एक दिन, बनारस में एक पेड़ के नीचे ध्यान करते समय, श्याम की कृपा से, श्याम वृन्दावन की माँ की महिमा की ओर आकर्षित हो गए। ये एक महीना उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. बाद में स्वामीजी की सलाह पर और श्री नारायण दास भक्तमाली के एक शिष्य की मदद से, महाराजजी मथुरा के लिए ट्रेन में चढ़ गये। महाराज जी बिना किसी परिचय के वृन्दावन पहुँच गये। जल्द ही अपने सद्गुरु देव की कृपा और श्री वृन्दावन धाम की कृपा से वह पूरी तरह से भक्ति में लीन हो गए और श्री राधा के चरण कमलों में उनकी असीम भक्ति विकसित हो गई।
स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज शिक्षा :-
प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Ji Maharaj) की शिक्षा उत्तर प्रदेश के एक स्कूल से हुई थी। उन्होंने पांचवीं कक्षा से ही गीता जी, श्री सुख सागर पढ़ना शुरू कर दिया था। उन्होंने स्कूल में भौतिकवादी ज्ञान के महत्व पर सवाल उठाया और यह कैसे उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा। उत्तर खोजने के लिए उन्होंने श्री राम जय राम और श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी का जाप करना शुरू कर दिया। जब वे कक्षा- 9 में थे तो उन्होंने आध्यात्मिक जीवन जीने का संकल्प लिया। उन्होंने अपनी माँ को विचारों और निर्णय के बारे में बताया और 13 वर्ष की छोटी उम्र में एक सुबह महाराज जी ने मानव जीवन के पीछे की सच्चाई को उजागर करने के लिए अपनी यात्रा शुरू की। स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज एन.आर.ने घर छोड़ दिया और भक्ति में लग गये।
वृंदावन का राधावल्लभ मंदिर :-
प्रेमानंदजी महाराज के गुरु श्रीहित गौरांगी शरण महाराज रहे. गुरु ने ही प्रेमानंद का श्रीकृष्ण भक्ति की ओर ध्यान खींचा.पहले बांके बिहारी मंदिर और फिर वृंदावन का राधावल्लभ मंदिर उनकी साधना की जगह बनी. राधावल्लभ मंदिर में ही उनकी भेंट गौरांगी शरण महाराज से हुई. उनसे मिलते ही उनका जीवन बदल गया. गौरांगी शरण महाराज के सानिध्य में वो करीब 10 साल रहे. यहीं श्री राधा राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा लेने के साथ उनका नाम प्रेमानंद महाराज पड़ा.
संक्रमण से किडनी खराब हुईं:-
युवावस्था में 35 साल की उम्र में उन्हें एक बार पेट में भयानक संक्रमण हुआ. उन्हें रामकृष्ण मिशन के अस्पताल में भर्ती कराया गया. वहीं मेडिकल जांच में पता चला कि उनकी दोनों किडनियां अब काम करना बंद कर चुकी हैं और वो कुछ सालों के ही मेहमान हैं, लेकिन यह उनकी अटूट श्रद्धा और जिजीविषा उन्हें आज भी जीवित रखे हुए है.
श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम:-
प्रेमानंद महाराज का वृंदावन वराह घाट स्थित श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम में उनका स्थायी निवास है. प्रेमानंद की भक्ति साधनामय जीवन राधा रानी की सेवा में समर्पित है. महाराज रात में करीब तीन बजे छटीकरा रोड पर श्री कृष्ण शरणम सोसायटी से रमणरेती में बने अपने आश्रम श्री हित राधा केलि कुंज में आते हैं. वो अपने भक्तों के साथ दो किलोमीटर से लंबी पदयात्रा पर निकलते हैं. उनके पीछे हजारों भक्तों का सैलाब भी उनका दर्शन करने को उमड़ता है.पहले वो वृंदावन की पूरी परिक्रमा पर भी निकलते थे लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वो ऐसा नहीं करते हैं.
किडनी का नाम राधा-कृष्ण रखा :-
प्रेमानंद महाराज की दोनों किडनियां कई वर्षों से खराब हैं. उनका पूरा दिन डायलिसिस यानी खून को साफ करने की प्रक्रिया चलती रहती है. हालांकि उनका प्रवचन कार्यक्रम रोज चलता है.कई भक्तों ने उन्हें अपनी किडनी दान देने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. उनके एक गुर्दे का नाम कृष्ण और दूसरे का राधा है. प्रेमानंदजी महाराज के शिष्यों और अनुयायियों में क्रिकेटर विराट कोहली, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जैसे शीर्ष हस्तियां भी हैं.