पन्नाधाय

पन्नाधाय जी के बारे मेंं

पन्नाधाय

पन्नाधाय

(पन्ना गुजरी)

जन्म: चित्तौड़गढ़ के पास माताजी की पांडोली गांव
बच्चे: चंदन
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : हिन्दू

पन्नाधाय जीवन परिचय :--

अपना सर्वस्व लुटाने वाली वीरांगना पन्नाधाय किसी राजपरिवार से नहीं बल्कि एक गुर्जर परिवार से थी. जिनका जन्म माताजी की पांडोली गांव में हरचंद हांकला के परिवार में 8 मार्च 1490 में हुआ था | अपने बेटे चंदन के साथ ही मेवाड़ के उत्तराधिकारी उदयसिंह को दूध पिलाने के कारण इन्हें धाय मां कहा गया. जिसके बाद यह पन्नाधाय कहलाईं | मेवाड़ के महाराजा विक्रमादित्य के बेटे उदयसिंह जिन्हें दूध पिलाने से लेकर पालने-पोसने का काम पन्नाधाय करती थीं। 

पन्ना धाय: त्याग और वीरता की प्रतीक:--

तू पुण्यमयी, तू धर्ममयी, तू त्याग­ तपस्या की देवी ...धरती के सब हीरे­पन्ने, तुझ पर वारें पन्ना देवी
तू भारत की सच्ची नारी, बलिदान चढ़ाना सिखा गयी...तू स्वामिधर्म पर, देशधर्म पर, हृदय लुटाना सिखा गयी

गीतकार सत्य नारायण गोयंका का यह गीत मेवाड़ ही नहीं पूरे विश्व में मां की महिमा को चरितार्थ करने वाली ममता मयी मां पन्नाधाय के बलिदान की याद दिलाता है. जिसने अपने जिगर के टुकड़े को मेवाड़ की आन बचाने के लिए हंसते-हंसते न्योछावर कर दिया. शौर्य और पराक्रम की भूमि राजस्थान की धरती शुरू से ही वीरों की धरती के रूप में जानी जाती है. यहां की सैंकड़ों वीरांगनाओं ने विश्वभर के लिए एक मिसाल कायम की है. इसी में से एक है पन्नाधाय. जब-जब भी मेवाड़ का जिक्र होता है तब-तब पन्नाधाय को भी याद किया जाता है. जिसने राष्ट्रधर्म के लिए ऐसी मिसाल कायम की जिसका विश्व में कोई उदाहरण ही नहीं है। 

बानवीर का षड्यंत्र और पन्ना धाय का बलिदान :--

1528 में राणा सांगा की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राणा रतन सिंह गद्दी पर बैठे, लेकिन 1531 में उनका भी निधन हो गया।

इसके बाद विक्रमादित्य सिंह को राजा बनाया गया, लेकिन उनका शासन कमजोर था और वे अनुशासनहीन थे।

इस स्थिति का लाभ उठाकर राणा सांगा का नाजायज पुत्र बानवीर सत्ता हथियाना चाहता था।

1536 में बनवीर ने महल में घुसकर विक्रमादित्य की हत्या कर दी और राणा उदयसिंह को मारने का षड्यंत्र रचा।

जब पन्ना धाय को बानवीर की योजना का पता चला, तो उन्होंने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर राजकुमार उदयसिंह को बचाने का निश्चय किया। उन्होंने उदयसिंह को एक टोकरी में छिपाकर महल से बाहर निकाल दिया और अपने पुत्र चंदन को राजकुमार के बिस्तर पर सुला दिया।

जब बानवीर महल में आया, तो उसने बिना कुछ सोचे बिस्तर पर सोए बालक (चंदन) की हत्या कर दी, यह सोचकर कि वह उदयसिंह है।

इसी बीच उदय सिंह की माता ने अपनी खास दासी पन्नाधाय के हाथों में उदय सिंह को सौंप दिया और मेवाड़ के भावी राणा की रक्षा करते हुए कुम्भलगढ़ भिजवाने की बात कही। पन्ना धाय राजस्थान के इतिहास की एक महान वीरांगना थीं, जिन्होंने अपने पुत्र का बलिदान देकर उदयपुर के राजकुमार उदय सिंह की प्राण रक्षा की। वे मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय (पालन-पोषण करने वाली) थीं। उनका यह त्याग भारतीय इतिहास में मातृ-बलिदान की अनूठी मिसाल है।

राणा उदयसिंह की रक्षा और पुनः राज्य प्राप्ति :--

उदयसिंह को सुरक्षित निकालकर पन्ना धाय ने उन्हें कुंभलगढ़ के किले में छुपा दिया, जहां अजीजा बारहठ नामक सरदार ने उनकी रक्षा की।

वर्षों बाद, 1540 में उदयसिंह ने अपना राज्य पुनः प्राप्त किया और उदयपुर नगर की स्थापना की।

पन्ना धाय की वीरता का महत्व :--

पन्ना धाय का यह बलिदान राजधर्म, त्याग और मातृभूमि की सेवा की अद्वितीय मिसाल है।

उन्होंने अपने पुत्र के प्राण देकर यह सिद्ध किया कि कर्तव्य और देश की रक्षा के लिए व्यक्तिगत भावनाओं का त्याग आवश्यक है।

उनका नाम राजस्थान और भारत के इतिहास में वीर माताओं में सर्वोच्च स्थान पर रखा जाता है।

पन्ना धाय के पुत्र चंदन: त्याग और बलिदान की अमर गाथा :--

पन्ना धाय का पुत्र चंदन भारतीय इतिहास में मातृभूमि की रक्षा के लिए दिए गए महानतम बलिदानों में से एक का प्रतीक है उनकी निर्दयतापूर्ण हत्या केवल इसलिए हुई क्योंकि उनकी माता, पन्ना धाय, ने अपने पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ के उत्तराधिकारी राणा उदयसिंह के प्राणों की रक्षा की।

चंदन का बलिदान: घटना का संक्षिप्त विवरण :--

मेवाड़ में सत्ता हथियाने के उद्देश्य से राणा सांगा के नाजायज पुत्र बानवीर ने षड्यंत्र रचकर राणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी।

इसके बाद उसने राजकुमार उदयसिंह को भी मारने की योजना बनाई, ताकि वह मेवाड़ का निर्विवाद शासक बन सके।

जब पन्ना धाय को इस षड्यंत्र का पता चला, तो उन्होंने उदयसिंह को एक टोकरी में छिपाकर महल से बाहर भेज दिया।

उदयसिंह के बिस्तर पर अपने पुत्र चंदन को सुला दिया, ताकि बानवीर को संदेह न हो।

जब बानवीर महल में आया, तो उसने बिना कुछ सोचे चंदन की हत्या कर दी, यह मानते हुए कि वह उदयसिंह है।

पन्ना धाय का मातृधर्म और चंदन की अमर शहादत :--

पन्ना धाय ने राजधर्म और कर्तव्य को सबसे ऊपर रखा और अपने पुत्र का बलिदान कर दिया।

चंदन मात्र 4-5 वर्ष का बालक था, लेकिन उसकी शहादत ने मेवाड़ को वैध उत्तराधिकारी प्रदान किया और राजवंश को बचाया।

चंदन की मासूम उम्र में दिए गए बलिदान को इतिहास में अमर त्याग के रूप में देखा जाता है।

चंदन का बलिदान क्यों महत्वपूर्ण था?

यदि उदयसिंह मारे जाते, तो मेवाड़ का राजवंश समाप्त हो सकता था।

चंदन के बलिदान के कारण ही उदयसिंह बच पाए और आगे चलकर मेवाड़ के राजा बने।

इस त्याग ने यह सिद्ध कर दिया कि कर्तव्य और मातृभूमि के लिए बलिदान सबसे बड़ा धर्म है।

निष्कर्ष :--

पन्ना धाय के पुत्र चंदन का बलिदान भारतीय इतिहास में सर्वोच्च बलिदानों में गिना जाता है। उनकी मृत्यु केवल एक व्यक्तिगत हानि नहीं थी, बल्कि यह राजधर्म, कर्तव्यनिष्ठा और मातृभूमि की सेवा का सबसे बड़ा उदाहरण थी। चंदन भले ही इतिहास के पन्नों में उतना प्रसिद्ध न हो, लेकिन उसकी त्याग और वीरता की गाथा अमर है।