राव चन्द्रसेन

राव चन्द्रसेन जी के बारे मेंं

राव चन्द्रसेन

राव चन्द्रसेन

(मारवाड़ का प्रताप)

जन्म: मारवाड़ (वर्तमान राजस्थान)
मृत्यु: विक्रम संवत 1637 माघ सुदी सप्तमी (11 जनवरी, 1581) को मारवाड़
पिता: राव मालदेव
माता: रानी उमादे
जीवनसंगी: रानी कल्याण देवी,रानी कछवाही सौभाग्यदेवी(कुल 11 रानियाँ)
बच्चे: राव रायसिंह, उग्रसेन जी, आसकरण जी(3 पुत्र)
राष्ट्रीयता: भारतीय
धर्म : हिन्दू

राव चन्द्रसेन की जीवनी :-

राव चंद्रसेन (1541-1581) मारवाड़ (वर्तमान राजस्थान) के एक प्रतापी राजपूत शासक थे। वह मारवाड़ के राठौड़ वंश के राजा मालदेव के पुत्र थे और उन्होंने मुगल सम्राट अकबर के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। राव चंद्रसेन को उनकी वीरता, दृढ़ संकल्प और स्वाभिमान के लिए जाना जाता है।

प्रारंभिक जीवन:--

राव चन्द्रसेन का जन्म विक्रम संवत 1598 श्रावण शुक्ला अष्टमी (30 जुलाई, 1541 ई.) को हुआ था। उनके पिता मालदेव मारवाड़ के शक्तिशाली शासक थे, जिन्होंने अपने शासनकाल में मारवाड़ को एक सशक्त राज्य बनाया। राव चन्द्रसेन जोधपुर, राजस्थान के राव मालदेव के छठे पुत्र थे। हालंकि इन्हें मारवाड़ राज्य की सिवाना जागीर दे दी गयी थी, पर राव मालदेव ने इन्हें ही अपना उत्तराधिकारी चुना था। राव मालदेव की मृत्यु के बाद राव चन्द्रसेन सिवाना से जोधपुर आये और विक्रम संवत 1619 को जोधपुर की राजगद्दी पर बैठे। राव चन्द्रसेन अपने भाइयों में छोटे थे, फिर भी उनके संघर्षशील व्यक्तित्व के चलते राव मालदेव ने अपने जीते जी इन्हें ही अपना उत्तराधिकारी चुन लिया था।

सत्ता संघर्ष:--

मालदेव की मृत्यु के बाद उनके पुत्रों के बीच सत्ता संघर्ष शुरू हो गया। चंद्रसेन के बड़े भाई राम और उदय सिंह ने मुगलों के साथ समझौता कर लिया, लेकिन चंद्रसेन ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उन्होंने मुगलों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा और मारवाड़ की स्वतंत्रता बनाए रखने का प्रयास किया।

मुगलों के साथ संघर्ष:--

राव चंद्रसेन ने मुगल सम्राट अकबर के विरुद्ध लगातार संघर्ष किया। अकबर ने मारवाड़ पर कब्जा करने के लिए कई बार सेना भेजी, लेकिन चंद्रसेन ने हर बार उनका मुकाबला किया। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई और मुगलों को कई बार पराजित किया। हालांकि, मुगलों की शक्ति और संसाधनों के सामने अंततः उन्हें पीछे हटना पड़ा।

स्वाभिमान और त्याग:-

राव चंद्रसेन ने कभी भी मुगलों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जारी रखा। उनका स्वाभिमान और दृढ़ संकल्प उन्हें राजपूत इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाता है।

**राव राम** - मालदेव के सबसे बड़े पुत्र, जिन्होंने मुगलों के साथ समझौता किया।
**राव उदय सिंह** - मालदेव के दूसरे पुत्र, जो मुगलों के सहयोगी बन गए।
**राव चंद्रसेन** - मालदेव के तीसरे पुत्र, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी।
अन्य भाई: राव रायसिंह और राव गोपालदास।

पत्नी और संतान:-

राव चन्द्रसेन की कुल 11 रानियाँ थीं

रानी कल्याण देवी :- चौहान बीका के पुत्र हम्मीर की पुत्री। इन रानी के एक पुत्र हुआ, जिनका नाम उग्रसेन था।
 रानी कछवाही सौभाग्यदेवी :- फागी के स्वामी नरुका सबलसिंह की पुत्री। इन रानी के एक पुत्र हुआ, जिनका नाम रायसिंह था।
रानी भटियाणी सौभाग्यदेवी :- इनका पीहर का नाम कनकावती था। ये जैसलमेर के रावल हरराज की पुत्री थीं। ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं।
रानी सिसोदिनी जी सूरजदेवी :- ये मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की पुत्री व महाराणा प्रताप की बहन थीं। इनके पीहर का नाम चंदा था। ये रानी तीर्थयात्रा के लिए मथुरा पधारीं, जहां इनका देहान्त हुआ। इन रानी का एक पुत्र हुआ, जिनका नाम आसकरण था।

रानी कछवाही कुमकुम देवी :- ये जोगसिंह कछवाहा की पुत्री थीं

रानी औंकार देवी :- ये सिरोही के देवड़ा मानसिंह की पुत्री थीं। इनका देहान्त मथुरा में हुआ।

 रानी भटियाणी प्रेमलदेवी :- ये बीकमपुर के राव डूंगरसिंह की पुत्री थीं।

 रानी भटियाणी सहोदरा :- ये बीकमपुर के रामसिंह की पुत्री थीं। इनका देहान्त गोपालवासणी में हुआ।

रानी भटियाणी जगीसा :- ये ठिकाना देरावर के स्वामी मेहा तेजसिंहोत की पुत्री थीं। ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं।

रानी सोढी मेघां :- ये ऊमरकोट के हेमराज सोढा की पुत्री थीं। ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं।

रानी चौहान पूंगदेवी :- ये देवलिया के इन्द्रसिंह चौहान की पुत्री थीं। ये राव चन्द्रसेन के साथ सती हुईं।

राव चन्द्रसेन के 3 पुत्र थे:--

राव रायसिंह, उग्रसेन जी, आसकरण जी –

आसकरण जी राव चन्द्रसेन व रानी सूरजदे के पुत्र थे। इस तरह आसकरण जी महाराणा प्रताप के भांजे हुए।

डिंगलकाव्य में Rao Chandrasen Rathore को इस तरह श्रद्धान्ज्ली दी गयी——

“अणदगिया तुरी उजला असमर, चाकर रहण न डिगिया चीत
सारे हिन्दुस्थान तणा सिर , पातल नै चन्द्रसेन प्रवीत।।”

अर्थात—-जिसके घोड़ो को कभी शाही दाग नही लगा,जो सदा उज्ज्वल रहे,शाही चाकरी के लिए जिनका चित्त नही डिगा, ऐसे सारे भारत के शीर्ष थे राणा प्रताप और राव चन्द्रसेन राठौड़।

वंशज:--

राव चंद्रसेन के वंशजों ने मारवाड़ की राजनीति में अपनी उपस्थिति बनाए रखी। हालांकि, मुगलों के साथ संघर्ष के कारण उनके परिवार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

राव चंद्रसेन का परिवार राजपूत इतिहास में अपने साहस, स्वाभिमान और दृढ़ संकल्प के लिए जाना जाता है। उनके पिता राव मालदेव और उनके भाइयों ने भी मारवाड़ के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राव चंद्रसेन की वीरता:-

राव चंद्रसेन राठौड़ (1562-1581) मारवाड़ के एक वीर और संघर्षशील शासक थे, जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ आजीवन संघर्ष किया। उनकी वीरता और अदम्य साहस के कई उल्लेखनीय प्रसंग हैं:

1. मुगलों के विरुद्ध संघर्ष

जब उनके पिता राव मालदेव की मृत्यु हुई, तब अकबर ने उनके बड़े भाई राव उदयसिंह को समर्थन देकर जोधपुर का शासक बना दिया।
लेकिन चंद्रसेन ने हार नहीं मानी और सीमित संसाधनों के बावजूद मुगलों के खिलाफ प्रतिरोध जारी रखा।
उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई और मुगलों की विशाल सेना से वर्षों तक संघर्ष किया।

2. जंगलों और दुर्गम क्षेत्रों में संघर्ष

चंद्रसेन ने अरावली पर्वत, मेवाड़, सिरोही और जैसलमेर की पहाड़ियों में शरण लेकर लड़ाई जारी रखी।
उनके पास कोई स्थायी राजधानी नहीं थी, फिर भी उन्होंने कभी भी अकबर के आगे समर्पण नहीं किया।
वे लगातार राजपूत सरदारों और स्थानीय जनजातियों को संगठित करके मुगलों के विरुद्ध युद्ध लड़ते रहे।

3. महाराणा प्रताप के साथ समानता:--

राव चंद्रसेन और महाराणा प्रताप दोनों ने ही मुगलों से संघर्ष किया, लेकिन प्रताप की तरह उन्हें भीषण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
प्रताप को मेवाड़ में कुछ सामंतों का समर्थन मिला, लेकिन चंद्रसेन को मारवाड़ में अपेक्षाकृत कम सहयोग मिला।
फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपना संघर्ष जारी रखा।
राव चन्द्रसेन मारवाड़ (जोधपुर) के राठौड़ शासक थे, जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर के विरुद्ध संघर्ष किया था। उनके शासनकाल (1562-1581) के दौरान कई महत्वपूर्ण युद्ध हुए, जिनमें प्रमुख ये थे:

निष्कर्ष:--

राव चन्द्रसेन राजपूती स्वतंत्रता के एक महत्वपूर्ण प्रतीक थे, जिन्होंने अंत तक मुगलों के सामने समर्पण नहीं किया। उनके संघर्ष ने आगे चलकर मारवाड़ में मुगल शासन के खिलाफ विद्रोह की नींव रखी।

राव चंद्रसेन की वीरता उनके आत्मसम्मान, संघर्ष और स्वतंत्रता के प्रति उनके अदम्य साहस को दर्शाती है। उन्होंने अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया और अंत तक मुगलों के सामने नहीं झुके। उनके बलिदान ने राजस्थान के वीर योद्धाओं की परंपरा को और भी गौरवमयी बना दिया।

वीरगति:--

1581 में, वर्षों की लड़ाइयों और संघर्ष के बाद राव चंद्रसेन का निधन हो गया।

उनकी मृत्यु के बाद अकबर ने उनके भाई उदयसिंह को जोधपुर का शासक बना दिया।

लेकिन उनकी वीरता और संघर्ष की गाथा आज भी राजस्थान में अमर है।